‘रिवर्स ट्रैप’ मामलों में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही को बिना ट्रायल रद्द नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्त्वपूर्ण फैसला
🔍 भूमिका:
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) का उद्देश्य सार्वजनिक सेवकों द्वारा रिश्वत लेने जैसे अपराधों को दंडित करना है। परंतु कुछ मामलों में तथाकथित “रिवर्स ट्रैप” (Reverse Trap) की अवधारणा भी सामने आती है, जिसमें आरोपी पर रिश्वत की मांग का आरोप होता है, लेकिन बाद में वह पैसा लौटाते हुए पकड़ा जाता है। ऐसे मामलों में अदालत के सामने यह प्रश्न खड़ा होता है कि क्या मात्र पैसे लौटाने से आरोप स्वतः समाप्त हो जाता है या फिर विस्तृत परीक्षण (Full Trial) आवश्यक है?
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में इसी विषय में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया है।
⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:
इस केस में एक सरकारी कर्मचारी पर आरोप था कि उसने एक व्यक्ति से कार्य करवाने के बदले रिश्वत मांगी। शिकायतकर्ता ने एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) से संपर्क किया और एक ट्रैप का आयोजन हुआ। ट्रैप के दौरान आरोपी ने कथित रूप से पैसे लेकर तुरंत लौटा दिए, जिसे “रिवर्स ट्रैप” कहा जाता है।
आरोपी ने यह कहकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की कि उसने पैसे नहीं लिए, बल्कि उन्हें लौटा दिया था, इसलिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 या 13 के अंतर्गत कार्यवाही नहीं बनती और मामला यहीं समाप्त कर देना चाहिए।
🧑⚖️ हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय:
कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:
- पैसे लेना और वापस करना, दोनों ही तथ्यात्मक (factual) मुद्दे हैं, जो साक्ष्य और गवाहों की जांच के बाद ही सिद्ध हो सकते हैं।
- रिवर्स ट्रैप का मतलब यह नहीं है कि आरोपी पर भ्रष्टाचार का आरोप स्वतः ही गिर जाए।
- शिकायतकर्ता द्वारा की गई शिकायत, ट्रैप के समय की घटनाएं, स्वतंत्र गवाहों की गवाही और तकनीकी साक्ष्य (जैसे फिनॉफ़थेलिन टेस्ट, वीडियो रिकॉर्डिंग आदि) का परीक्षण ट्रायल के दौरान ही किया जा सकता है, न कि केवल FIR या चार्जशीट के आधार पर।
- इसलिए, मात्र पैसे लौटाने की दलील के आधार पर भ्रष्टाचार के मुकदमे को हाईकोर्ट की रिट जुरिसडिक्शन में समाप्त नहीं किया जा सकता।
📜 कानूनी दृष्टिकोण:
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 13(1)(d) के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए केवल पैसे की प्राप्ति ही नहीं, बल्कि रिश्वत की मांग और मंशा (mens rea) को भी सिद्ध करना आवश्यक है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि मात्र पैसे की वसूली ही पर्याप्त नहीं है, जब तक कि उसकी पृष्ठभूमि और परिस्थितियाँ स्पष्ट न हो जाएं।
📌 प्रभाव और महत्व:
- यह निर्णय साफ दर्शाता है कि “रिवर्स ट्रैप” जैसी स्थितियों में हाईकोर्ट सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक कि सबूतों की पूरी तरह से जांच न हो जाए।
- इससे यह भी सिद्ध होता है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को प्रारंभिक स्तर पर केवल तकनीकी आधार पर समाप्त करना न्याय की भावना के विपरीत है।
✅ निष्कर्ष:
कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निर्णय भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन की दिशा में एक ठोस कदम है। “रिवर्स ट्रैप” जैसी जटिल कानूनी स्थितियों में, अदालतों को साक्ष्य के सभी पहलुओं का समुचित परीक्षण करने की आवश्यकता है, ताकि न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
संदेश स्पष्ट है – भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराधों में आरोपी को सिर्फ पैसे लौटाने की बात कहकर राहत नहीं मिल सकती, जब तक कि पूरी ट्रायल प्रक्रिया न हो जाए।