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“धारा 125 Cr.P.C. के अंतर्गत भरण-पोषण न देने पर वैवाहिक वाद स्थगित किया जा सकता है: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय”

लेख शीर्षक:
“धारा 125 Cr.P.C. के अंतर्गत भरण-पोषण न देने पर वैवाहिक वाद स्थगित किया जा सकता है: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय”


परिचय:
भारतीय न्याय प्रणाली में भरण-पोषण से संबंधित आदेशों का पालन अनिवार्य रूप से किया जाना आवश्यक है। जब एक पक्ष न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करता है, तब न्यायालयों को यह अधिकार है कि वे अपने आदेशों के अनुपालन को सुनिश्चित करें और प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकें।
हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि पति धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) के तहत निर्धारित भरण-पोषण की बकाया राशि का भुगतान नहीं करता है, तो परिवार न्यायालय धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के अंतर्गत अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए वैवाहिक वाद (जैसे तलाक या वापसी) को स्थगित (stay) कर सकता है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • पत्नी को धारा 125 Cr.P.C. के तहत भरण-पोषण की राशि दी गई थी।
  • पति द्वारा यह भरण-पोषण लगातार बकाया रखा गया और आदेश की अवहेलना की गई।
  • पत्नी ने परिवार न्यायालय से अनुरोध किया कि जब तक पति आदेश का पालन नहीं करता, तब तक उसके द्वारा दायर वैवाहिक वाद पर रोक लगाई जाए।
  • न्यायालय ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए Section 151 CPC के तहत वाद पर रोक (stay) लगा दी।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:

  1. धारा 125 Cr.P.C.:
    यह धारा भरण-पोषण से संबंधित है और निर्धन पत्नी, बच्चे या माता-पिता को जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक सहायता दिलाने हेतु पति को दायित्वबद्ध करती है।
  2. धारा 151 CPC (न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति):
    जब CPC में विशेष रूप से कोई उपाय उपलब्ध न हो, तब न्यायालय न्याय के हित में प्रक्रिया की रक्षा के लिए अपने अंतर्निहित अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।

कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय:

  1. आदेश की अवहेलना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है:
    यदि पति स्वयं को न्यायालय की शरण में रखता है, और उसी न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करता है, तो यह proceedings का दुरुपयोग है।
  2. न्यायालय के पास आदेश के अनुपालन हेतु रोक लगाने का अधिकार है:
    धारा 151 CPC न्यायालय को ऐसी स्थितियों में उचित उपाय प्रदान करती है जिससे न्यायिक आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
  3. Cr.P.C. में पारित आदेश की अवमानना पर भी परिवार न्यायालय कार्रवाई कर सकता है:
    यद्यपि धारा 125 Cr.P.C. एक अलग संहिता के अंतर्गत आती है, लेकिन जब उसकी अनुपालना परिवार न्यायालय से जुड़ी हो, तो उसी न्यायालय को आदेश लागू कराने का अधिकार है।
  4. महिला के अधिकारों की रक्षा:
    न्यायालय ने यह भी कहा कि यह कदम न्यायिक संतुलन बनाए रखने और महिला के अधिकारों की रक्षा हेतु आवश्यक है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • न्यायालय के आदेशों का पालन करना सभी पक्षों के लिए अनिवार्य है।
  • धारा 151 CPC एक शक्तिशाली उपकरण है जो न्यायालय को अपने आदेशों की प्रभावशीलता बनाए रखने की शक्ति देता है।
  • पति द्वारा भरण-पोषण न देना स्वयं वैवाहिक वाद चलाने के नैतिक आधार को कमजोर करता है।

निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट रूप से बताता है कि न्यायालय अपने आदेशों को केवल कागज़ी नहीं रहने देगा। यदि कोई पक्ष आदेश की अवहेलना करता है, तो न्यायालय अपने अंतर्निहित अधिकारों का प्रयोग कर ऐसी प्रक्रिया को रोक सकता है, जिससे न्याय की हानि न हो। कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय उन महिलाओं के लिए राहत है जिन्हें बार-बार न्यायिक आदेशों के बावजूद भरण-पोषण नहीं मिल पाता। यह निर्णय न्यायिक अनुशासन, नारी गरिमा, और प्रक्रिया की मर्यादा को बनाए रखने हेतु एक सशक्त उदाहरण है।