न्याय की आत्मा है मानवीय दृष्टिकोण, तकनीक नहीं: सीजेआई बी.आर. गवई का वैश्विक मंच से संदेश”

शीर्षक: “न्याय की आत्मा है मानवीय दृष्टिकोण, तकनीक नहीं: सीजेआई बी.आर. गवई का वैश्विक मंच से संदेश”


🔷 प्रस्तावना:

डिजिटल युग में जहां न्यायपालिका तकनीकी उन्नति की ओर तेज़ी से बढ़ रही है, वहीं भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सीजेआई बी.आर. गवई ने एक गंभीर और संतुलित चेतावनी दी है। उन्होंने ब्रिटिश इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड कम्पेरेटिव लॉ द्वारा आयोजित सम्मेलन में अपने उद्बोधन में कहा कि प्रौद्योगिकी को न्याय व्यवस्था का प्रमुख आधार बनाने से न्यायपालिका में लोगों का विश्वास डगमगा सकता है

उनका स्पष्ट संदेश था: “न्याय का मूल मानवीय दृष्टिकोण है, तकनीकी दक्षता नहीं।”


🔶 सम्मेलन की पृष्ठभूमि:

  • स्थान: लंदन, ब्रिटिश इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड कम्पेरेटिव लॉ
  • विषय: “न्यायालय, वाणिज्य और कानून का शासन”
  • वक्ता: भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (Chief Justice of India)

यह सम्मेलन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में कानून, न्याय और प्रौद्योगिकी के त्रिकोणीय संबंध को लेकर आयोजित किया गया था, जिसमें सीजेआई गवई ने भारत के अनुभव, भविष्य की चुनौतियाँ और संवेदनशील समाधान प्रस्तुत किए।


🔷 मुख्य बिंदु और विचार:

1. तकनीक का अत्यधिक प्रभाव – एक चेतावनी

“जिस क्षण हम प्रौद्योगिकी को कानूनी प्रणाली में ड्राइवर की सीट लेने देते हैं, हम अपने प्रति जनता के विश्वास को खत्म करना शुरू कर देते हैं।”

सीजेआई गवई ने स्पष्ट कहा कि प्रौद्योगिकी एक सहायक साधन हो सकती है, लेकिन इसका नेतृत्वकारी भूमिका में आना खतरनाक है। इससे मानव तत्व कमजोर होगा, जो न्याय का मूल है।


2. मानवता का संरक्षण आवश्यक

“तकनीकी एकीकरण की इस दौड़ में हमें अपनी मानवता को नहीं भूलना चाहिए।”

उन्होंने आगाह किया कि न्याय केवल तर्क और नियमों का अनुप्रयोग नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, सहानुभूति और न्यायप्रिय विवेक का भी विषय है।


3. न्यायपालिका: परंपरा और भविष्य के बीच संतुलन

सीजेआई ने कहा कि न्यायालयों को परंपरा और नवाचार के बीच पुल बनकर कार्य करना होगा।

“जब लोग परंपरा और नवाचार के बीच चौराहे पर खड़े होते हैं, तो अदालतें प्राचीन ज्ञान की संरक्षक और भविष्य के न्याय की वास्तुकार होती हैं।”

यह कथन बताता है कि तकनीक को समावेशी और मानवीय तरीके से ही लागू करना न्याय व्यवस्था की सफलता की कुंजी होगी।


4. वाणिज्य और न्याय का संतुलन

गवई ने ज़ोर देकर कहा कि अर्थव्यवस्था और वाणिज्यिक प्रक्रिया में न्यायालयों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है, लेकिन यह भागीदारी भी कानून के शासन और मानव कल्याण को प्राथमिकता देते हुए होनी चाहिए।


5. डी.वाई. चंद्रचूड़ के विचारों की पुनः पुष्टि

सीजेआई गवई ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के उस विचार को दोहराया जिसमें कहा गया था कि:

“प्रौद्योगिकी को सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने का माध्यम होना चाहिए, लक्ष्य नहीं।”


🔶 निष्कर्ष:

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई का यह वक्तव्य तकनीकी युग की अंधी दौड़ में न्याय व्यवस्था के लिए एक चेतावनी और मार्गदर्शन दोनों है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रौद्योगिकी को अपनाना आवश्यक है, लेकिन वह मानवता को निगल जाए, यह कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता।

आज जब AI, डिजिटल कोर्ट, वर्चुअल सुनवाई जैसी व्यवस्थाएं न्यायिक प्रणाली का हिस्सा बन रही हैं, तब न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना होगा कि “न्याय, केवल डिजिटल प्रक्रिया नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना से युक्त अनुभव” बना रहे।

यह संदेश न केवल भारत के लिए, बल्कि विश्व की समस्त न्याय व्यवस्थाओं के लिए एक नैतिक दिशा-सूचक है – कि तकनीक सहायक हो सकती है, लेकिन न्याय केवल संवेदना और विवेक से ही संभव है।