29 वर्षों की अलगाव के बाद तलाक मंजूर: कोर्ट ने कहा – धारा 498A से बरी होना ‘मानसिक क्रूरता’ से इनकार नहीं करता

शीर्षक: 29 वर्षों की अलगाव के बाद तलाक मंजूर: कोर्ट ने कहा – धारा 498A से बरी होना ‘मानसिक क्रूरता’ से इनकार नहीं करता


परिचय:

वैवाहिक संबंधों में यदि आपसी विश्वास और साथ समाप्त हो जाए, तो वैवाहिक बंधन केवल कागजों पर रह जाता है। हाल ही में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें यह कहा गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) से किसी व्यक्ति को बरी किया जाना (acquittal) यह साबित नहीं करता कि मानसिक क्रूरता (mental cruelty) नहीं हुई थी। यह फैसला 29 वर्षों के लंबे अलगाव और अनेक कानूनी लड़ाइयों के बाद सुनाया गया।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • इस मामले में पति-पत्नी 1995 से अलग रह रहे थे।
  • पत्नी ने 498A IPC के तहत पति और उसके परिवार के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिसमें पति को अदालत ने बरी (acquitted) कर दिया था।
  • इसके बाद पत्नी ने तलाक की याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन में मिली मानसिक और भावनात्मक क्रूरता का हवाला दिया।

कोर्ट की टिप्पणी:

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि:

“पति को 498A मामले में बरी किया जाना यह सिद्ध नहीं करता कि पत्नी को मानसिक पीड़ा नहीं हुई। अदालतों में मुकदमे लड़ना, वर्षों तक पति से अलग रहना, पारिवारिक उपेक्षा झेलना — ये सभी मानसिक क्रूरता के स्वरूप हैं।”

अदालत ने यह भी माना कि:

  • पति और पत्नी के बीच 29 वर्षों से कोई वैवाहिक संपर्क नहीं था।
  • इस लंबे समय तक अलगाव को वैवाहिक संबंधों का पूर्ण विच्छेद माना गया।
  • ऐसे में इस विवाह को जबरन बनाए रखना अनुचित और अमानवीय होगा।

498A में बरी होने का क्या अर्थ है?

  • धारा 498A IPC घरेलू हिंसा या वैवाहिक क्रूरता से महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई है।
  • कई बार इस धारा का दुरुपयोग भी देखा गया है, जिसके कारण अदालतें सावधानीपूर्वक मामलों का परीक्षण करती हैं।
  • लेकिन केवल साक्ष्यों के अभाव में आरोपी का बरी हो जाना यह साबित नहीं करता कि कोई मानसिक या भावनात्मक यातना नहीं हुई

मानसिक क्रूरता का कानूनी अर्थ:

भारत में ‘मानसिक क्रूरता’ को सुप्रीम कोर्ट ने कई बार परिभाषित किया है:

यदि किसी भी व्यवहार से व्यक्ति को मानसिक पीड़ा, अपमान या असहनीय तनाव हो, जिससे वह वैवाहिक जीवन जारी रखने में असमर्थ हो जाए — वह ‘मानसिक क्रूरता’ है।

इस मामले में:

  • पत्नी को वर्षों तक अकेले रहना पड़ा।
  • उसने सामाजिक तिरस्कार, अपमान और मानसिक तनाव का सामना किया।
  • ये सभी चीजें मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आती हैं।

कोर्ट का निष्कर्ष और आदेश:

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने तलाक की अनुमति देते हुए कहा:

  1. वैवाहिक संबंध केवल औपचारिकता रह गए हैं।
  2. यह विवाह दीर्घकालिक और अपूरणीय टूटन का उदाहरण है।
  3. ऐसे संबंध को बनाए रखना कानून के साथ-साथ नैतिकता के विरुद्ध है।

इसलिए अदालत ने वैवाहिक संबंध को तत्काल प्रभाव से समाप्त करते हुए तलाक की मंजूरी दी।


इस फैसले का महत्व:

  1. विवाह की यथार्थता को स्वीकार करना: अदालत ने यह दर्शाया कि विवाह केवल नाम का नहीं, जीवन का वास्तविक और सक्रिय संबंध होना चाहिए।
  2. 498A की बरी के बावजूद न्याय: यह निर्णय एक उदाहरण है कि कानूनी बरी होना अन्याय या पीड़ा के अभाव का प्रमाण नहीं है।
  3. मानसिक क्रूरता के व्यापक अर्थ को स्वीकारना: यह फैसला भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक पक्षों को कानून के दायरे में लाता है।

निष्कर्ष:

यह निर्णय भारतीय पारिवारिक कानून में एक न्यायसंगत और मानवीय दृष्टिकोण का परिचायक है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल कानूनी तकनीकीताओं के आधार पर भावनाओं और वास्तविकता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। विवाह, यदि केवल एक बोझ बन जाए, तो उससे मुक्ति देना ही न्याय है। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का यह निर्णय कानून और करुणा के संतुलन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।