शीर्षक:
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम के तहत अंतरिम मुआवजे के भुगतान हेतु 60 दिनों की वैधानिक अवधि देना अनिवार्य: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय
लंबा लेख:
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 के अंतर्गत चेक अनादर (Cheque Bounce) के मामलों में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि जब कोई मजिस्ट्रेट अदालत आरोपी को अंतरिम मुआवजा (Interim Compensation) देने का निर्देश देती है, तो उसे वैधानिक रूप से निर्धारित 60 दिनों की अवधि प्रदान करना अनिवार्य है। इससे कम समय देना कानून की दृष्टि में कानूनी त्रुटि (Legal Infirmity) माना जाएगा।
पृष्ठभूमि:
यह मामला नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम की धारा 143A से संबंधित था, जो मजिस्ट्रेट को यह शक्ति देता है कि वह अभियुक्त को अंतरिम मुआवजा पीड़ित को देने का आदेश दे सकता है, जो अधिकतम चेक राशि का 20% तक हो सकता है। इस मुआवजे के भुगतान हेतु अधिनियम में 60 दिनों की समय-सीमा निर्धारित की गई है, जिसे उचित कारणों पर 30 दिन और बढ़ाया जा सकता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ:
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:
- धारा 143A(5) के अनुसार, आरोपी को अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने के लिए 60 दिन की अवधि दी जानी चाहिए।
- यदि मजिस्ट्रेट इस वैधानिक अवधि से कम समय देता है (जैसे 15 दिन या 30 दिन), तो यह प्रक्रियात्मक अनुचितता है और इसे कानून के उल्लंघन के रूप में देखा जाएगा।
- इस प्रकार की त्रुटि आरोपी के न्यायिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, विशेष रूप से जब अंतरिम मुआवजा न देने पर आरोपी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई संभव है।
निर्णय का महत्व:
यह निर्णय स्पष्ट रूप से न्यायिक अधिकारियों को यह याद दिलाता है कि वे वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए आदेश दें। कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम समयसीमा न्यायिक विवेक के अधीन नहीं है और इसे घटाना आरोपी के लिए अनुचित दबाव या न्याय से वंचित करने के समान है।
निष्कर्ष:
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम के तहत चल रहे मामलों में आरोपी की वैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यह एक महत्वपूर्ण न्यायिक मार्गदर्शन है कि अंतरिम मुआवजे के आदेश में 60 दिन की अवधि देना आवश्यक है, अन्यथा यह आदेश कानूनन दोषयुक्त माना जाएगा।