लेख शीर्षक:
“स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) की डिक्री पर कोई निष्पादन समय-सीमा नहीं: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय – Saraswati Devi v. Santosh Singh, 2025”
परिचय:
सुप्रीम कोर्ट ने Saraswati Devi & Ors v. Santosh Singh & Ors [SLP (Civil) Nos. 2817-18 of 2020] में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) की डिक्री को निष्पादित (Execute) करने के लिए किसी प्रकार की सीमित समयावधि (Limitation Period) लागू नहीं होती है। यह निर्णय दीवानी न्यायशास्त्र में स्थायी निषेधाज्ञाओं के प्रभाव और प्रवर्तन को लेकर एक प्रमुख दृष्टांत के रूप में देखा जा रहा है।
मामले का सारांश:
- वादियों (Saraswati Devi एवं अन्य) को ट्रायल कोर्ट द्वारा स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री प्रदान की गई थी।
- वर्षों बाद जब प्रतिवादी (Santosh Singh एवं अन्य) ने उस निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया, तब वादी पक्ष ने डिक्री को निष्पादित करने हेतु याचिका दाखिल की।
- प्रतिवादी पक्ष ने आपत्ति जताई कि निष्पादन याचिका देरी से दाखिल हुई है, इसलिए वह सीमावधि अधिनियम (Limitation Act) के तहत barred है।
- इस पर सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि क्या स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री का निष्पादन सीमित अवधि के भीतर करना अनिवार्य है?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“A decree of permanent injunction operates perpetually. Its violation at any point of time permits the decree-holder or their successors to seek its enforcement.”
“When a permanent injunction is granted, it creates a continuing obligation on judgment debtors and their successors in interest. Thus, no limitation period applies to its execution.”
मुख्य बिंदु:
- Permanent Injunction की डिक्री ‘perpetual obligation’ बनाती है जो हर समय लागू रहती है।
- ऐसा आदेश न केवल मूल प्रतिवादियों पर, बल्कि उनके उत्तराधिकारियों और अधिकार हस्तांतरित करने वालों पर भी बाध्यकारी होता है।
- Limitation Act, 1963 के तहत ऐसी डिक्री के निष्पादन हेतु कोई समय सीमा नहीं है, क्योंकि यह एक निरंतर अधिकार (Continuing Right in Personam) का सृजन करती है।
- हर बार जब निषेधाज्ञा का उल्लंघन होता है, डिक्रीधारी को प्रवर्तन की स्वतंत्रता मिलती है, चाहे मामला वर्षों पुराना क्यों न हो।
न्यायालय की व्याख्या:
“An injunction decree is not a mere judgment but a continuing order. It is enforceable whenever breached.”
“Limitation applies to executable money decrees or possession orders, but not to perpetual injunctions.”
निष्कर्ष:
इस निर्णय ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि न्यायालय द्वारा जारी की गई स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री समय के बंधन से परे होती है। यह प्रतिकूल पक्ष (Judgment Debtors) और उनके उत्तराधिकारी/अधिकार हस्तांतरणकर्ताओं पर जीवनपर्यंत लागू रहती है और उसके उल्लंघन पर किसी भी समय उसका प्रवर्तन (Enforcement) किया जा सकता है।