” पंजीकरण अधिकारी को दस्तावेज़ की वैधता या संपत्ति के शीर्षक पर विचार करने का अधिकार नहीं – गुजरात उच्च न्यायालय”

शीर्षक: “पंजीकरण अधिकारी को दस्तावेज़ की वैधता या संपत्ति के शीर्षक पर विचार करने का अधिकार नहीं – गुजरात उच्च न्यायालय”

मामला:
Sitaram Sugars बनाम Baroda Central Co-operative Bank
गुजरात उच्च न्यायालय
2016 (2) GCD 1368
विशेष सिविल आवेदन संख्या: 8436/2015


मुख्य मुद्दा:

क्या भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 35 तथा रजिस्ट्रेशन रूल्स, 1970 के नियम 45 के अंतर्गत पंजीकरण अधिकारी को यह अधिकार है कि वह प्रस्तुत दस्तावेज़ की वैधता, संपत्ति के स्वामित्व (title), या लेन-देन की वैधता की जांच कर सके?


न्यायालय का निर्णय:

गुजरात उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:

  • पंजीकरण अधिकारी का कार्य केवल प्रस्तुत दस्तावेज़ का पंजीकरण करना है, न कि उसके वैध या अवैध होने पर विचार करना।
  • नियम 45 इस बात को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करता है कि पंजीयन अधिकारी को दस्तावेज़ की वैधता, संपत्ति के स्पष्ट शीर्षक या उस पर भार (encumbrance) की स्थिति की जांच नहीं करनी चाहिए
  • पंजीकरण का तात्पर्य यह नहीं है कि संपत्ति पर कोई विवाद नहीं है या उसका शीर्षक स्पष्ट है। यदि पक्षों के बीच संपत्ति का विवाद है, तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
  • पंजीकरण अधिकारी को “टाइटल सर्टिफिकेट” जारी करने वाला प्राधिकारी नहीं माना जा सकता। उसका कार्य सिर्फ प्रस्तुत दस्तावेज़ को वैधानिक प्रक्रियाओं के तहत पंजीकृत करना होता है।

महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

  • यह निर्णय रजिस्ट्री कार्यालयों की भूमिका और उनकी सीमाओं को स्पष्ट करता है।
  • यह नागरिकों को इस भ्रम से मुक्त करता है कि दस्तावेज़ का पंजीकरण संपत्ति के वैध स्वामित्व का प्रमाण है।
  • लेन-देन करते समय खरीदार को स्वयं उचित जांच (due diligence) करनी चाहिए, क्योंकि पंजीकरण अधिकारी की कोई जिम्मेदारी इस संबंध में नहीं बनती।

न्यायालय की भाषा में:

“The Registering Authority has no concern, and it is not his business to consider whether the property conveyed has a clear title or is having an encumbrance…”