शीर्षक: “हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत पुत्री का संपत्ति पर पूर्ण अधिकार, लेकिन 20 दिसंबर 2004 से पहले की रजिस्टर्ड विभाजन या वसीयत को मान्य अपवाद: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – G. Koteshwaramma बनाम Chakiri Yanadi”
विस्तृत लेख:
मामला: G. Koteshwaramma v. Chakiri Yanadi
निर्णय वर्ष: 2011
संदर्भ:
- 2011 (9) SCC 788
- AIR 2012 SC 169
- 2011 (12) SCR 968
- 2011 (11) Scale 467
- 2011 (11) JT 483
🔍 मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला एक संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में पुत्री के अधिकार से संबंधित है, जिसे मिताक्षरा विधि (Mitakshara Law) द्वारा शासित किया जाता है। वाद का मूल प्रश्न यह था कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 (Hindu Succession Amendment Act, 2005) के तहत पुत्री को किस हद तक संयुक्त पारिवारिक संपत्ति में अधिकार प्राप्त है, और क्या पूर्व में किए गए विभाजन या वसीयत इस अधिकार को प्रभावित करते हैं?
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और प्रमुख बिंदु:
- पुत्री का अधिकार पूर्ण और जन्मसिद्ध (Coparcenary Right is Absolute and By Birth):
न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि 2005 के संशोधन के तहत, किसी संयुक्त हिंदू परिवार की पुत्री को उसी प्रकार से संपत्ति में अधिकार प्राप्त है जैसा कि पुत्र को। यह अधिकार पूर्ण (absolute) है और जन्म से ही प्राप्त होता है, चाहे पुत्री विवाहित हो या अविवाहित। - लेकिन कुछ अपवाद भी लागू होते हैं (Exceptions to Applicability):
यह अधिकार उन मामलों में लागू नहीं होता:- जहां संपत्ति का विभाजन (partition) 20 दिसंबर 2004 से पहले वैध रूप से किया गया हो, और
- जहां संपत्ति का वसीयतनामा (will/testamentary disposition) 20 दिसंबर 2004 से पहले लिखित रूप में किया गया हो।
- ‘विभाजन’ (Partition) का अर्थ:
नए संशोधित धारा 6 के संदर्भ में ‘विभाजन’ का मतलब वही विभाजन मान्य होगा जो:- रजिस्टर्ड दस्तावेज़ (registered deed of partition) द्वारा किया गया हो, जैसा कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत मान्य है, या
- न्यायालय के आदेश (decree of court) द्वारा प्रभावी रूप से किया गया हो।
अतः केवल मौखिक विभाजन (oral partition), या बिना पंजीकरण के पारिवारिक व्यवस्था को मान्य विभाजन नहीं माना जाएगा।
📌 निर्णय का महत्व:
- यह निर्णय पुत्रियों के उत्तराधिकार संबंधी संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों की पुष्टि करता है।
- यह बताता है कि समय निर्धारण (cut-off date) किस प्रकार अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।
- यह संपत्ति के मामलों में पूर्ववर्ती विभाजनों की वैधता की स्पष्ट परिभाषा प्रदान करता है।
🔎 उदाहरण के रूप में:
यदि किसी संयुक्त हिंदू परिवार ने 18 दिसंबर 2004 को एक मौखिक विभाजन किया था, और उस पर कोई दस्तावेज़ न तो रजिस्टर्ड है और न ही कोई न्यायिक आदेश प्राप्त है, तो ऐसा विभाजन पुत्री के अधिकार को नहीं बाधित करेगा।
परंतु यदि कोई रजिस्टर्ड विभाजन या न्यायालय द्वारा घोषित विभाजन 20 दिसंबर 2004 से पहले हो चुका है, तो पुत्री उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती।
📝 निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला बताता है कि:
- पुत्री का अधिकार संयुक्त परिवार की संपत्ति पर समान और पूर्ण है।
- 20 दिसंबर 2004 से पूर्व किए गए रजिस्टर्ड विभाजन या वसीयत वैध अपवाद हैं।
- केवल औपचारिक एवं विधिसम्मत विभाजन ही पुत्री के अधिकार को बाधित कर सकते हैं।