“हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना: NDPS कोर्ट चित्तौड़गढ़ द्वारा जब्ती पेश न करना न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है – न्यायिक लापरवाही से दो वर्षों से हिरासत में है अभियुक्त”

शीर्षक: “हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना: NDPS कोर्ट चित्तौड़गढ़ द्वारा जब्ती पेश न करना न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है – न्यायिक लापरवाही से दो वर्षों से हिरासत में है अभियुक्त”

विस्तृत लेख:

स्थान: जोधपुर/चित्तौड़गढ़
तारीख: 13 मई 2024
मामला: NDPS अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में चित्तौड़गढ़ NDPS कोर्ट द्वारा जब्ती (seizure) दस्तावेज़ अब तक पेश न किए जाने को लेकर न्यायिक प्रणाली पर गंभीर सवाल उठे हैं।

राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच ने 13 मई 2024 को स्पष्ट आदेश दिया था कि NDPS विशेष न्यायालय, चित्तौड़गढ़ में लंबित मामले में जब्ती की रिपोर्ट पेश की जाए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके और अभियुक्त की जमानत याचिका पर विचार हो सके। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश को एक महीने से अधिक समय बीतने के बावजूद अभी तक अमल में नहीं लाया गया है।

⚖️ न्यायालय की गरिमा को ठेस

चित्तौड़गढ़ स्थित NDPS कोर्ट द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश की अनदेखी न केवल अदालत की अवमानना की श्रेणी में आती है, बल्कि यह दर्शाता है कि न्यायालयीन जवाबदेही और संवेदनशीलता में कितनी कमी रह गई है।

  • प्रार्थी पिछले 2 वर्षों से न्यायिक हिरासत में है।
  • उसके परिवार की आर्थिक और मानसिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी है।
  • हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद जब्ती रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करना न्यायालयीन प्रणाली की शिथिलता और मानवाधिकारों की अवहेलना का गंभीर उदाहरण है।

📜 न्यायिक जवाबदेही की मांग

इस प्रकरण में यह अपेक्षित था कि NDPS कोर्ट:

  1. हाईकोर्ट का आदेश तत्काल प्रभाव से तलब करती।
  2. संबंधित अधिकारियों को जब्ती रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देती और उसकी समयसीमा तय करती।
  3. आदेश की अनुपालना की स्थिति रिपोर्ट हाईकोर्ट को भेजती।

लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो यह सवाल उठता है कि क्या एक सामान्य व्यक्ति को न्याय पाने के लिए वर्षों तक प्रतीक्षा करनी चाहिए, और क्या न्यायालयों को अपनी ही श्रद्धा और संवैधानिक उत्तरदायित्व का सम्मान नहीं करना चाहिए?

🔍 सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि से:

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार दोहराया है कि:

“न्याय में विलंब, न्याय से इनकार के समान है।”

यदि आदेश का निष्पादन नहीं होता, तो अभियुक्त की जमानत याचिका भी निष्पक्ष रूप से विचाराधीन नहीं हो सकती, जो उसके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

📝 निष्कर्ष:

इस प्रकरण में यह आवश्यक है कि:

  • राजस्थान हाईकोर्ट NDPS कोर्ट से स्पष्टीकरण तलब करे,
  • संबंधित न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक जांच हो, और
  • अभियुक्त को न्याय दिलाने हेतु जमानत याचिका पर शीघ्र निर्णय लिया जाए।

यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र की विश्वसनीयता और संवेदनशीलता का परीक्षण है।