लेख शीर्षक:
“नसबंदी में चूक पर स्थाई लोक अदालत का फैसला: बच्ची के पालन-पोषण व मां को मुआवजा देने का आदेश”
प्रयागराज की स्थाई लोक अदालत ने महिला की नसबंदी में हुई चिकित्सकीय चूक को गंभीर मानते हुए राज्य सरकार को बच्ची के पालन-पोषण, शिक्षा एवं मां को मुआवजा देने का निर्देश दिया है।
प्रयागराज की स्थाई लोक अदालत के चेयरमैन श्री विकार अहमद अंसारी तथा सदस्यगण डॉ. ऋचा पाठक और श्री सत्येन्द्र मिश्रा की पीठ ने यह ऐतिहासिक आदेश पारित किया। यह मामला याची अनीता देवी द्वारा दायर उस वाद से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने नसबंदी ऑपरेशन में चूक के कारण अनचाही संतान के जन्म की बात कही थी।
📌 मामले के मुख्य तथ्य:
- याची अनीता देवी, एक गरीब महिला हैं जिनके पहले से ही तीन बच्चे थे।
- उन्होंने मऊआइमा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, प्रयागराज में डॉ. नीलिमा से नसबंदी कराई थी।
- ऑपरेशन के बाद उन्हें बताया गया कि नसबंदी सफल रही है और भविष्य में गर्भधारण नहीं होगा।
- कुछ दिनों बाद परेशानी महसूस होने पर अल्ट्रासाउंड कराया गया, जिसमें 16 सप्ताह 6 दिन के गर्भ की पुष्टि हुई।
- 31 जनवरी 2014 को याची ने एक कन्या को जन्म दिया।
- इसके पश्चात याची ने सीएमओ प्रयागराज को पक्षकार बनाकर स्थाई लोक अदालत में मुआवजे की मांग की।
⚖️ स्थाई लोक अदालत का आदेश:
- बच्ची के पालन-पोषण हेतु ₹2,00,000 (दो लाख रुपए) का एकमुश्त भुगतान।
- बच्ची की शिक्षा एवं देखभाल हेतु ₹5,000 प्रतिमाह की राशि जब तक वह 18 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले या ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त न कर ले — जो पहले हो।
- मां अनीता देवी को मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा के लिए ₹20,000 मुआवजा।
🧑⚖️ न्याय का सशक्त उदाहरण:
यह निर्णय भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में जवाबदेही और महिला अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक सशक्त उदाहरण है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नसबंदी जैसे गंभीर चिकित्सकीय कार्य में लापरवाही सहनीय नहीं है, और इसके दुष्परिणामों का बोझ पीड़ित महिला को नहीं उठाना चाहिए।
निष्कर्ष:
स्थाई लोक अदालत का यह निर्णय न केवल चिकित्सा संस्थानों की जवाबदेही तय करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि चिकित्सा त्रुटियों का सीधा प्रभाव झेलने वाले नागरिकों को न्याय मिले। यह मामला भविष्य के लिए एक मिसाल बनकर उभरा है।