“हत्या, गैंगस्टर व गंभीर अपराधों में भी अग्रिम जमानत संभव: बीएनएसएस पर यूपी संशोधन का प्रभाव नहीं – लखनऊ हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”

लेख शीर्षक:
“हत्या, गैंगस्टर व गंभीर अपराधों में भी अग्रिम जमानत संभव: बीएनएसएस पर यूपी संशोधन का प्रभाव नहीं – लखनऊ हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”


परिचय:
उत्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत से जुड़े मामलों में एक ऐतिहासिक मोड़ तब आया जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने यह स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 में राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2019 में किए गए संशोधन, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS), 2023 की धारा 482 पर स्वतः लागू नहीं होंगे। इस निर्णय के अनुसार, अब हत्या, गैंगस्टर, एनडीपीएस, यूएपीए, ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट जैसे गंभीर मामलों में भी अग्रिम जमानत की गुंजाइश हो सकती है, यदि बीएनएसएस की धारा 482 में इसका कोई स्पष्ट निषेध न हो।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में याचिकाकर्ता रमन साहनी, जो कि एक गैंगस्टर एक्ट के आरोपी थे, ने अग्रिम जमानत की याचिका दाखिल की थी। राज्य सरकार ने इसका विरोध करते हुए यह तर्क दिया कि उत्तर प्रदेश राज्य अधिनियम संख्या 4 के अंतर्गत वर्ष 2019 में CrPC की धारा 438 में संशोधन किया गया था, जिसमें कुछ गंभीर अपराधों को अग्रिम जमानत के दायरे से बाहर कर दिया गया था।
इन अपराधों में शामिल हैं:

  • गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध,
  • NDPS एक्ट,
  • UAPA (Unlawful Activities Prevention Act),
  • Official Secrets Act,
  • और ऐसे सभी अपराध जिनमें मृत्युदंड का प्रावधान है।

उच्च न्यायालय की टिप्पणी एवं निर्णय:
न्यायमूर्ति प्रकाश सिंह की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि:

  1. BNSS की धारा 482 एक स्वतंत्र प्रावधान है:
    इसमें अग्रिम जमानत की प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लेख है, और जब तक BNSS में कोई संशोधन नहीं किया जाता, तब तक CrPC में किए गए राज्य संशोधन स्वतः इस पर लागू नहीं हो सकते।
  2. CrPC और BNSS के बीच अंतर:
    CrPC के प्रावधानों पर राज्य सरकार अधिसूचना या अधिनियम के माध्यम से संशोधन कर सकती है, लेकिन BNSS एक नया केंद्रीय अधिनियम है, जिसमें राज्यों के पुराने संशोधन नए सिरे से लागू किए जाने की आवश्यकता होगी।
  3. बीएनएसएस की धारा 531 का सीमित प्रभाव:
    राज्य सरकार द्वारा तर्क दिया गया कि बीएनएसएस की धारा 531 के अंतर्गत CrPC की पुरानी अधिसूचनाएँ और संशोधन BNSS के समकक्ष प्रावधानों पर लागू होंगे। परंतु न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जब तक BNSS की धारा 482 में स्पष्ट निषेध नहीं है, तब तक पूर्व संशोधन प्रभावहीन हैं।

राज्य सरकार का पक्ष:
राज्य सरकार ने बताया कि BNSS की धारा 482 में संशोधन के लिए ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है, ताकि हत्या, गैंगस्टर, एनडीपीएस जैसे अपराधों को अग्रिम जमानत के दायरे से पुनः बाहर किया जा सके। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि 16 वर्ष से कम उम्र की महिला से बलात्कार और 18 वर्ष से कम उम्र की महिला से सामूहिक दुराचार के मामलों में अग्रिम जमानत पहले से ही अस्वीकार्य है।


कानूनी महत्व:
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि:

  • BNSS एक अलग कानून है और उस पर CrPC के संशोधन स्वतः लागू नहीं होते।
  • जब तक राज्य सरकार BNSS में अलग से संशोधन नहीं करती, तब तक गंभीर मामलों में भी अग्रिम जमानत की संभावना खुली रहेगी।
  • यह निर्णय न्यायिक स्वायत्तता और अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

निष्कर्ष:
लखनऊ उच्च न्यायालय के इस निर्णय से उत्तर प्रदेश में कानूनी परिदृश्य में एक बड़ा परिवर्तन आया है। अब BNSS की धारा 482 के तहत हत्या, गैंगस्टर, एनडीपीएस जैसे मामलों में भी, यदि उचित आधार हो, तो अग्रिम जमानत प्राप्त की जा सकती है। हालांकि राज्य सरकार भविष्य में इसे सीमित करने के लिए संशोधन कर सकती है, लेकिन तब तक यह निर्णय प्रेरक और निर्णायक सिद्ध होगा।