HARJINDER SINGH बनाम राज्य पंजाब एवं अन्य, 2025 SC: अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत आरोप तय करने में अलिबाई की भूमिका और उसकी जांच का महत्व

महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट निर्णय: “PLEA OF ALIBI” और धारा 319 CrPC के तहत आवेदन पर न्यायालय का दृष्टिकोण

शीर्षक:
HARJINDER SINGH बनाम राज्य पंजाब एवं अन्य, 2025 SC: अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत आरोप तय करने में अलिबाई की भूमिका और उसकी जांच का महत्व


परिचय:
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 319 के तहत न्यायालय के पास यह अधिकार है कि वह जांच के दौरान आवश्यक समझे तो किसी तीसरे व्यक्ति को अभियुक्त के रूप में शामिल कर सकता है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने HARJINDER SINGH बनाम राज्य पंजाब के मामले में यह स्पष्ट किया कि ‘अलिबाई’ (Alibi) केवल एक बचाव की दलील होती है, जिसका भार और प्रमाण प्रस्तुत करना अभियुक्त का दायित्व होता है।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में प्रस्तावित अभियुक्त ने अपनी रक्षा के लिए अलिबाई की दलील दी, जिसके समर्थन में उसने पार्किंग टिकट, केमिस्ट की रसीद, ओपीडी कार्ड और सीसीटीवी फुटेज जैसे दस्तावेज प्रस्तुत किए। प्रस्तावित अभियुक्त ने दावा किया कि वह अपराध के समय कहीं और था। इस आधार पर उसने धारा 319 CrPC के तहत अपने खिलाफ आरोप तय न करने की मांग की।


सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:

  1. अलिबाई क्या है?
    अलिबाई एक बचाव की दलील है, जो अभियुक्त द्वारा यह सिद्ध करने के लिए दी जाती है कि वह अपराध के समय घटना स्थल पर उपस्थित नहीं था। इसका प्रमाण देने की जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है।
  2. दस्तावेजों की स्थिति:
    अदालत ने कहा कि पार्किंग टिकट, केमिस्ट की रसीद, ओपीडी कार्ड और सीसीटीवी क्लिप जैसे दस्तावेज अभी तक औपचारिक रूप से प्रमाणित नहीं हुए हैं। वे केवल कागजी दस्तावेज हैं और जब तक इन्हें औपचारिक तौर पर जांच के दायरे में नहीं लाया जाता, ये ‘अंजाने’ प्रमाण के समान हैं।
  3. अपराध प्रक्रिया का सामान्य क्रम:
    सुप्रीम कोर्ट ने रेखांकित किया कि यदि न्यायालय शुरुआती स्तर पर ही इन दस्तावेजों को निर्णायक मान लेता है, तो यह आपराधिक प्रक्रिया के स्थापित क्रम को उलट देना होगा। इसका मतलब होगा कि न्यायालय आरोप तय करने से पहले बचाव की दलील पर फैसला सुनाने लगे। जो न्याय प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
  4. धारा 319 CrPC का अनुप्रयोग:
    न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावित अभियुक्त के खिलाफ धारा 319 CrPC के तहत आरोप तय करने का आवेदन स्वीकार किया जाएगा क्योंकि अलिबाई की दलील अभी तक प्रमाणित नहीं हुई है और वह प्रारंभिक जांच में संदेह उत्पन्न करने वाली नहीं साबित हुई।
  5. अलिबाई की स्वीकार्यता:
    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अलिबाई की दलील तब तक पूरी तरह परखा नहीं जा सकती जब तक उसका प्रमाण और परीक्षण पूरा न हो जाए। केवल दस्तावेजों की उपस्थिति पर उसकी स्वीकृति नहीं की जा सकती।

निष्कर्ष:
इस फैसले से स्पष्ट हो गया कि आपराधिक मामलों में प्रारंभिक जांच के दौरान अलिबाई के आधार पर आरोप तय करने से पहले उसकी संपूर्ण जांच और परीक्षण अनिवार्य है। न्यायालय को दोष सिद्धि की पूरी प्रक्रिया के दौरान सभी प्रमाणों का विचार करना होता है, और बचाव की दलीलों पर निर्णय तभी दिया जाना चाहिए जब उनका औपचारिक परीक्षण हो चुका हो।


महत्वपूर्ण बिंदु:

  • अलिबाई एक रक्षा दलील है, जिसकी प्रमाणिकता अभियुक्त को साबित करनी होती है।
  • प्रारंभिक स्तर पर बिना परीक्षण के दस्तावेजों को निर्णायक माना जाना न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांतों के खिलाफ है।
  • धारा 319 CrPC के तहत आरोप तय करने में न्यायालय को सावधानी से जांच करनी चाहिए।
  • आरोप तय होने के बाद अभियुक्त को बचाव का पूरा अवसर दिया जाना न्यायिक प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है।

प्रभाव:
यह निर्णय आपराधिक न्यायिक प्रणाली में अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा करते हुए अदालतों को स्पष्ट दिशा देता है कि कैसे अलिबाई और उसके समर्थन में प्रस्तुत दस्तावेजों का प्रारंभिक स्तर पर परीक्षण किया जाना चाहिए।