गरीब अभियुक्त के लिए मानवीय प्रावधान: स्वयं के वचन (Own Bond) पर जमानत की विशेष सुविधा

महत्वपूर्ण प्रावधान और आदेश: गरीब व्यक्ति के लिए विशेष सुविधा (Special Relief for Indigent Person)

शीर्षक: गरीब अभियुक्त के लिए मानवीय प्रावधान: स्वयं के वचन (Own Bond) पर जमानत की विशेष सुविधा


भूमिका:
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अंतर्गत न्यायपालिका ने अभियुक्तों को न्याय दिलाने के लिए कई प्रावधान बनाए हैं। इसमें गरीब अभियुक्तों (Indigent Persons) के लिए एक विशेष मानवीय प्रावधान रखा गया है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को न्यायालय की प्रक्रिया में अनावश्यक रूप से दंडित न किया जाए।


विशेष प्रावधान का उद्देश्य:
कई बार ऐसा होता है कि किसी अभियुक्त पर कोई बाइलबल (Bailable) अपराध आरोपित होता है। कानून के अनुसार ऐसे अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जा सकता है। लेकिन व्यवहार में कई गरीब अभियुक्त जमानत देने में असमर्थ रहते हैं क्योंकि उनके पास न तो पर्याप्त धन होता है और न ही कोई सक्षम ज़मानती (Surety)। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए कानून ने गरीब अभियुक्तों को स्वयं के वचन (Own Bond) पर रिहा करने की विशेष व्यवस्था की है।


स्वयं के वचन पर रिहाई (Own Bond):
इस व्यवस्था के तहत, अदालत या पुलिस यह मान सकती है कि अभियुक्त न्यायालय में हाजिर होगा और उसके भाग जाने की संभावना नहीं है। इसलिए उसे केवल एक लिखित वचन (Bond) देना होगा, जिसमें वह यह आश्वासन देगा कि वह अदालत में उपस्थित रहेगा। उसे कोई ज़मानती प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं होगी।


गरीब व्यक्ति (Indigent Person) की परिभाषा:
इस प्रावधान के अनुसार, यदि कोई अभियुक्त गिरफ्तारी की तारीख से एक सप्ताह के भीतर जमानत नहीं दे पाता, तो यह माना जाएगा कि वह गरीब (Indigent Person) है। इसका मतलब यह हुआ कि अदालत को उसे स्वयं के वचन पर रिहा करना चाहिए।


उदाहरण:
मान लीजिए, श्याम एक मजदूर है और उस पर एक बाइलबल अपराध का आरोप है। उसे गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया। श्याम कहता है कि वह कोर्ट में हर तारीख पर जरूर हाजिर होगा लेकिन उसके पास कोई ज़मानती नहीं है और न ही आर्थिक स्थिति है कि वह पैसे दे सके। ऐसे में यदि श्याम 7 दिन तक जेल में रहता है और कोई जमानती प्रस्तुत नहीं कर पाता, तो पुलिस या कोर्ट को श्याम को गरीब मानकर स्वयं के वचन पर रिहा करना चाहिए। इससे न केवल श्याम के अधिकारों की रक्षा होगी बल्कि न्यायालय की मानवीय दृष्टिकोण भी स्पष्ट होगा।


महत्व और प्रभाव:
इस प्रावधान का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि कोई भी गरीब व्यक्ति केवल अपनी आर्थिक स्थिति के कारण अनावश्यक रूप से जेल में बंद न रहे। यह संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ के अधिकार के अनुरूप भी है।


निष्कर्ष:
गरीब अभियुक्तों के लिए स्वयं के वचन पर रिहाई का यह प्रावधान भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में एक अत्यंत मानवीय और न्यायसंगत कदम है। यह न केवल अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि न्यायालय की संवेदनशीलता और सामाजिक न्याय की भावना को भी उजागर करता है।