सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: “कार्यात्मक विकलांगता” के मुआवजे की गणना में श्रम अधिनियम की अनुसूची तक सीमित रहने की आवश्यकता नहीं
(Kamal Dev Prasad बनाम Mahesh Forge — सुप्रीम कोर्ट, 2025)
प्रस्तावना
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने Kamal Dev Prasad बनाम Mahesh Forge मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि कार्यात्मक विकलांगता (Functional Disability) के मुआवजे की गणना करते समय निचली अदालतें Employees’ Compensation Act, 1923 की अनुसूची (Schedule) में दिए गए प्रतिशतों तक सीमित नहीं हैं। अदालत ने कहा कि पीड़ित की वास्तविक अक्षमता (Actual Disability) और उसकी रोज़गार क्षमता (Earning Capacity) पर पड़े प्रभाव को ध्यान में रखकर न्यायसंगत मुआवजा निर्धारित किया जाना चाहिए।
मामला संक्षेप में
इस मामले में, अपीलकर्ता (Kamal Dev Prasad) एक फैक्ट्री में काम करता था और काम के दौरान एक गंभीर दुर्घटना में घायल हो गया जिससे उसकी कार्यक्षमता स्थायी रूप से प्रभावित हो गई। निचली अदालत ने Employees’ Compensation Act, 1923 की अनुसूची के आधार पर मुआवजा तय किया, लेकिन अपीलकर्ता ने दलील दी कि उसकी वास्तविक अक्षमता उसके रोज़गार के अवसरों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है और मुआवजा पर्याप्त नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि —
✅ Employees’ Compensation Act, 1923 की अनुसूची महज़ एक मार्गदर्शक (Guideline) है।
✅ अदालतों को यह देखना होगा कि दुर्घटना के कारण पीड़ित व्यक्ति की रोज़गार क्षमता (Earning Capacity) किस हद तक प्रभावित हुई है।
✅ पीड़ित की शारीरिक अक्षमता और कार्यात्मक अक्षमता में अंतर होता है — कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से 30% अक्षम हो सकता है, लेकिन उसकी कार्यक्षमता 100% तक प्रभावित हो सकती है, अगर वह अब अपनी पूर्व की नौकरी नहीं कर सकता।
✅ अदालतों को ऐसे मामलों में यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाकर मुआवजा न्यायसंगत और पर्याप्त रूप में देना चाहिए।
कानूनी सिद्धांत
➡️ Employees’ Compensation Act, 1923 की अनुसूची केवल संदर्भ और मार्गदर्शन के लिए है, न कि अंतिम सीमा (Ceiling)।
➡️ सुप्रीम कोर्ट ने “Nizam’s Institute of Medical Sciences बनाम Prasanth S. Dhananka (2009)” और “Raj Kumar बनाम Ajay Kumar (2011)” जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि कार्यात्मक विकलांगता की गणना व्यक्ति की पेशेवर क्षमता (Occupational Capacity) को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए।
➡️ “कार्यात्मक विकलांगता” का अर्थ है उस विशेष काम को करने की क्षमता, जिसे व्यक्ति दुर्घटना से पहले कर सकता था, और अब उसमें कमी आई हो।
निर्णय का महत्व
- कोर्ट ने यह दोहराया कि मुआवजे का उद्देश्य केवल शारीरिक चोट की क्षतिपूर्ति करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति की आजीविका (Livelihood) पर पड़े प्रभाव की भी भरपाई करना है।
- इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि न्यायालयों को दुर्घटना के प्रभावों का समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और यह देखना चाहिए कि दुर्घटना से व्यक्ति की आमदनी, कार्यक्षमता, जीवनशैली और सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा है।
- सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा निर्धारण के लिए एक व्यावहारिक और मानवीय दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया।
निष्कर्ष
Kamal Dev Prasad बनाम Mahesh Forge का यह ऐतिहासिक फैसला मुआवजा कानून की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस निर्णय के बाद निचली अदालतों को यह स्वतंत्रता मिल गई है कि वे Employees’ Compensation Act, 1923 की अनुसूची तक सीमित हुए बिना कार्यात्मक विकलांगता के आधार पर वास्तविक न्यायसंगत मुआवजा तय कर सकें। इससे पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों को मज़बूती मिलेगी और न्याय के दरवाज़े और व्यापक रूप से खुलेंगे।