सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: मुआवजा याचिका में सभी कानूनी वारिसों को पक्षकार बनाना अनिवार्य नहीं — FAO-5241-2013 O&M
SALINDER SINGH बनाम OM PARKASH एवं अन्य — मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति (MACT) मामलों में महत्वपूर्ण व्याख्या
प्रस्तावना
हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने SALINDER SINGH बनाम OM PARKASH एवं अन्य, 2025 PbHr (FAO-5241-2013 O&M) में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति अधिनियम (MACT) के अंतर्गत दायर क्षतिपूर्ति याचिका (Claim Petition) सभी कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा संयुक्त रूप से या किसी एक कानूनी प्रतिनिधि द्वारा भी दायर की जा सकती है। यदि मृतक की विवाहित बेटी (Married Daughter) को पक्षकार नहीं बनाया गया, तो भी याचिका खारिज नहीं की जा सकती।
मामला संक्षेप में
मूल मामला एक सड़क दुर्घटना से संबंधित था जिसमें एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। मृतक की ओर से एक याचिका MACT में दायर की गई थी जिसमें मृतक की पत्नी और अन्य कानूनी प्रतिनिधियों ने मुआवजे की मांग की।
हालांकि, ट्रिब्यूनल ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि मृतक की विवाहित बेटी को पक्षकार नहीं बनाया गया है और इसलिए याचिका दोषपूर्ण है।
ट्रिब्यूनल का दृष्टिकोण
- ट्रिब्यूनल का तर्क था कि सभी कानूनी वारिसों को पक्षकार बनाना आवश्यक है ताकि मुकदमा पूर्ण रूप से विचाराधीन हो सके।
- मृतक की विवाहित बेटी के पक्षकार न बनने के कारण याचिका को त्रुटिपूर्ण मानकर खारिज कर दिया गया।
हाईकोर्ट का फैसला
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
✅ सभी कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा संयुक्त याचिका दायर करना अनिवार्य नहीं है।
✅ MACT अधिनियम (Motor Vehicles Act) के तहत किसी भी एक कानूनी प्रतिनिधि द्वारा मुआवजा याचिका दायर की जा सकती है।
✅ यदि मृतक की बेटी (चाहे विवाहित हो या अविवाहित) को पक्षकार नहीं बनाया गया, तो इससे मुआवजे की राशि में कोई वृद्धि नहीं होती है क्योंकि क्षतिपूर्ति की गणना मृतक की आय, भविष्य की संभावनाओं और अन्य कारकों पर आधारित होती है, न कि पक्षकारों की संख्या पर।
✅ ऐसे मामलों में ट्रिब्यूनल को विवाहित बेटी को आवश्यक पक्षकार बनाने के लिए नोटिस जारी कर शामिल करने का विकल्प खुला होता है, लेकिन याचिका को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।
कानूनी सिद्धांत
➡️ मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति” द्वारा याचिका दायर की जा सकती है, जो मृतक का कानूनी प्रतिनिधि हो सकता है।
➡️ यह प्रावधान लचीला है और इसका उद्देश्य न्यायसंगत मुआवजा दिलाना है, न कि केवल प्रक्रिया के आधार पर याचिका को खारिज करना।
➡️ अदालतों ने बार-बार कहा है कि क्षतिपूर्ति मामलों में तकनीकी आपत्तियों के आधार पर दावों को खारिज करना अनुचित होगा।
महत्वपूर्ण टिप्पणी
- हाईकोर्ट ने कहा कि यदि मृतक की बेटी को पक्षकार नहीं बनाया गया है तो भी मुआवजा देने में कोई रुकावट नहीं आती।
- मुआवजे की राशि बेटी की उपस्थिति या अनुपस्थिति से प्रभावित नहीं होती क्योंकि इसका निर्धारण मृतक की आय एवं निर्भरता के आधार पर होता है।
- ऐसे मामलों में न्यायालय प्रक्रिया की आड़ में न्याय से वंचित नहीं कर सकता।
आदेश और नतीजा
हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल का आदेश खारिज कर दिया और मामले को पुनः सुनवाई के लिए ट्रिब्यूनल को भेज दिया ताकि सभी कानूनी पहलुओं पर विचार किया जा सके और वादियों को न्याय मिल सके।
निष्कर्ष
यह फैसला मुआवजा कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है और न्यायालयों को यह मार्गदर्शन देता है कि—
✅ सभी कानूनी वारिसों को पक्षकार बनाना अनिवार्य नहीं है।
✅ मुआवजा याचिका को तकनीकी त्रुटियों के आधार पर खारिज करना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।
✅ मोटर दुर्घटना मामलों में अदालतों को “सब्सटैंस ओवर फॉर्म” के सिद्धांत को अपनाते हुए पीड़ित पक्ष को उचित राहत प्रदान करनी चाहिए।