आरोप पत्र के साथ प्रस्तुत न किए गए दस्तावेज भी अभियोजन के दौरान पेश किए जा सकते हैं:

आरोप पत्र के साथ प्रस्तुत न किए गए दस्तावेज भी अभियोजन के दौरान पेश किए जा सकते हैं:
सुप्रीम कोर्ट का महत्त्वपूर्ण निर्णय

प्रस्तावना

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत अभियोजन की प्रक्रिया में निष्पक्षता और न्यायपूर्ण सुनवाई के सिद्धांत सर्वोपरि हैं। आरोप पत्र (Chargesheet) के साथ दस्तावेजों का समुचित प्रस्तुतिकरण अभियुक्त के लिए आरोपों को समझने और उसका बचाव करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। परंतु कभी-कभी कुछ दस्तावेज तकनीकी या अन्य कारणों से चार्जशीट के साथ संलग्न नहीं हो पाते हैं। ऐसे में क्या अभियोजन को अदालत की अनुमति से ऐसे दस्तावेजों को बाद में पेश करने का अधिकार है? इस विषय पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें कहा गया है कि अभियोजन आरोप पत्र के साथ प्रस्तुत न किए गए दस्तावेजों को भी उचित कारण दिखाकर बाद में न्यायालय के समक्ष पेश कर सकता है।


मामला संक्षेप में

एक आपराधिक मामले में अभियोजन पक्ष ने आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल किया, लेकिन कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज उसके साथ संलग्न नहीं कर सका। मुकदमे की कार्यवाही के दौरान अभियोजन ने न्यायालय से प्रार्थना की कि वह शेष दस्तावेज भी प्रस्तुत करना चाहता है, ताकि अभियुक्त के विरुद्ध मामला पूरी तरह से रखा जा सके। इस पर निचली अदालत ने अभियोजन को ऐसा करने की अनुमति दे दी।

अभियुक्त ने इस आदेश को उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अभियुक्त का तर्क था कि आरोप पत्र के साथ प्रस्तुत न किए गए दस्तावेजों को मुकदमे के दौरान दाखिल करने की अनुमति देना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा, क्योंकि इससे अभियुक्त के बचाव का अधिकार प्रभावित होता है।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
✅ दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के धारा 173(5) एवं (8) के प्रावधान अभियोजन को अतिरिक्त दस्तावेज या सामग्री अदालत में प्रस्तुत करने की अनुमति देते हैं, बशर्ते अभियुक्त को उसका उचित अवसर दिया जाए।
✅ अभियोजन के पास यह अधिकार है कि यदि चार्जशीट दाखिल करते समय कुछ दस्तावेज संलग्न करना छूट गया हो, तो उसे अदालत की अनुमति से मुकदमे के दौरान दाखिल किया जा सकता है।
✅ अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि अभियुक्त को उन दस्तावेजों की प्रति उपलब्ध करवाई जाए और उचित समय दिया जाए ताकि वह अपना बचाव कर सके।
✅ इस प्रकार, अभियोजन को बाधा रहित न्यायिक प्रक्रिया में अभियुक्त के खिलाफ साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाना चाहिए।


कानूनी परिप्रेक्ष्य

🔹 धारा 173(5) CrPC — आरोप पत्र के साथ अभियोजन को सभी प्रासंगिक दस्तावेज प्रस्तुत करने होते हैं।
🔹 धारा 173(8) CrPC — जांच के दौरान अभियोजन नए साक्ष्य या दस्तावेज प्राप्त करता है तो उसे अदालत की अनुमति से बाद में भी प्रस्तुत कर सकता है।
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को अभियोजन के अधिकार और अभियुक्त के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के संतुलन के रूप में व्याख्यायित किया।


महत्व और प्रभाव

👉 सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अभियोजन की प्रक्रिया को न्यायोचित और लचीला बनाता है।
👉 इस फैसले से अभियुक्त को यह आश्वासन भी मिलता है कि नए दस्तावेज प्रस्तुत करने की स्थिति में उसे न्यायालय से उचित अवसर मिलेगा।
👉 यह निर्णय अभियोजन को तकनीकी त्रुटियों या अनजाने में रह गए दस्तावेजों को पेश करने का अवसर देकर मुकदमे को अधिक प्रभावी और न्यायपूर्ण बनाता है।
👉 यह भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के उद्देश्यों — निष्पक्षता, त्वरित न्याय और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता — को सुदृढ़ करता है।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अभियोजन को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह न्यायालय की अनुमति से आरोप पत्र के साथ प्रस्तुत न किए गए दस्तावेजों को भी अभियुक्त के विरुद्ध मुकदमे के दौरान प्रस्तुत कर सके। यह फैसला अभियोजन और अभियुक्त के अधिकारों के बीच न्यायपूर्ण संतुलन को रेखांकित करता है, जिससे निष्पक्ष सुनवाई और न्याय की अवधारणा को मजबूती मिलती है।