Powergrid Corporation Of India Limited बनाम Central Electricity Regulatory Commission एवं अन्य
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : ऑपरेशनल खर्च के नाम पर उपभोक्ताओं पर भार नहीं डाला जा सकता :
प्रस्तावना
विद्युत क्षेत्र के संचालन और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए विद्युत नियामक आयोग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाल ही में Powergrid Corporation of India Limited ने Central Electricity Regulatory Commission (CERC) के खिलाफ एक अपील दायर की थी, जिसमें उसने 24 करोड़ रुपये के ट्रांसफार्मर प्रतिस्थापन लागत को उपभोक्ताओं पर थोपने के लिए टैरिफ (विद्युत दर) में संशोधन की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को खारिज करते हुए यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि ऐसे खर्चे ‘ऑपरेशनल खर्च’ की श्रेणी में आते हैं और इन्हें उपभोक्ताओं से वसूल नहीं किया जा सकता।
मामला संक्षेप में
Powergrid Corporation ने अपने कुछ इंटर-कनेक्टिंग ट्रांसफार्मर्स (ICTs) के विफल हो जाने पर उन्हें बदलने के लिए 24 करोड़ रुपये खर्च किए। उसने इस खर्च को ‘अतिरिक्त कार्य’ (Additional Capitalization) के रूप में मानते हुए इसे उपभोक्ताओं पर डालने के लिए विद्युत दरों में संशोधन की माँग की। लेकिन CERC ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया कि ICTs के प्रतिस्थापन से उपभोक्ताओं पर कोई अतिरिक्त भार नहीं डाला जाना चाहिए क्योंकि यह केवल ऑपरेशनल खर्च है। Powergrid ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
मुख्य तर्क
Powergrid का तर्क था कि ICTs का प्रतिस्थापन दरअसल एक ‘capital expenditure’ (पूंजीगत व्यय) है, जो उसकी परिसंपत्तियों के जीवनकाल को बढ़ाता है और इस कारण उसे विद्युत दरों में शामिल किया जाना चाहिए। जबकि CERC और अन्य पक्षों ने दलील दी कि ICTs का विफल होना और उनका प्रतिस्थापन सामान्य परिचालन प्रक्रिया का हिस्सा है, और इसे बिजली उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ डालकर नहीं वसूला जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि:
- ICTs का प्रतिस्थापन दरअसल उपकरण की विफलता के कारण किया गया है, न कि किसी नई परियोजना या अतिरिक्त क्षमता निर्माण के तहत।
- इस प्रतिस्थापन को ‘Additional Capitalization’ नहीं माना जा सकता।
- ICTs का प्रतिस्थापन एक नियमित ‘operational expense’ है, जिसे कंपनी को अपने परिचालन व्ययों में समायोजित करना चाहिए।
- इस खर्च को विद्युत दरों में शामिल करके उपभोक्ताओं पर डालना न्यायसंगत नहीं है।
न्यायालय की टिप्पणी
“किसी उपकरण के विफल हो जाने पर उसके प्रतिस्थापन को पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। ऐसा खर्च संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी के तहत ही माना जाएगा। अतः इसे उपभोक्ताओं पर भार डालकर वसूलना न्यायसंगत नहीं है।”
परिणाम और महत्त्व
👉 यह फैसला विद्युत क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
👉 यह साफ करता है कि ऑपरेशनल असफलताओं की वजह से हुए खर्च को बिजली उपभोक्ताओं से वसूलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
👉 इससे कंपनियों को अपनी परिसंपत्तियों के प्रबंधन में और अधिक सतर्क रहने का संदेश जाता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय न केवल उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है, बल्कि विद्युत कंपनियों को जिम्मेदारीपूर्वक प्रबंधन और रखरखाव करने की भी प्रेरणा देता है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि उपभोक्ताओं को गैर-जरूरी आर्थिक बोझ से बचाने के लिए नियामक ढांचे को मजबूती से लागू किया जाएगा।