SUNIL KUMAR KHUSHWAHA बनाम KATRAGADDA SATYANARAYANA & ANR (2025 SC): कार्यात्मक विकलांगता (Functional Disability) के निर्धारण पर महत्वपूर्ण निर्णय

शीर्षक: SUNIL KUMAR KHUSHWAHA बनाम KATRAGADDA SATYANARAYANA & ANR (2025 SC): कार्यात्मक विकलांगता (Functional Disability) के निर्धारण पर महत्वपूर्ण निर्णय

परिचय:

Motor Accident Claims Tribunal (MACT) के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय Sunil Kumar Khushwaha v. Katragadda Satyanarayana & Another (SLP No. 16748/2024, 2025 SC) एक महत्वपूर्ण दृष्टांत है, जो कार्यात्मक विकलांगता (functional disability) की वास्तविक समझ और आकलन के आधार को स्पष्ट करता है। इस निर्णय में न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया कि मात्र यह तथ्य कि कोई घायल व्यक्ति पूर्व में की जा रही अपनी आजीविका से संबंधित कार्य नहीं कर सकता, इससे कार्यात्मक विकलांगता को 100% नहीं माना जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि:

Sunil Kumar Khushwaha एक सड़क दुर्घटना में घायल हुए, जिसके परिणामस्वरूप वे अपनी पूर्व की आजीविका – फल विक्रय – को जारी नहीं रख पाए। उन्होंने दावा किया कि वे 100% कार्यात्मक विकलांग हो गए हैं, चूंकि वे अब फल नहीं बेच सकते। मामला MACT और उच्च न्यायालयों से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहाँ इस प्रश्न पर विचार किया गया कि क्या केवल किसी की आजीविका पर प्रभाव पड़ने से कार्यात्मक विकलांगता को पूर्ण (100%) माना जा सकता है।

न्यायालय का निर्णय और तर्क:

सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि सिर्फ इसलिए कि घायल व्यक्ति पूर्व की आजीविका नहीं कर पा रहा, उसे 100% कार्यात्मक विकलांग घोषित किया जाए। न्यायालय ने निम्नलिखित बिंदुओं पर बल दिया:

  1. आजीविका का स्वरूप: न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता फुटपाथ पर फल नहीं बेच रहा था, बल्कि उसका एक दुकान था जो बाजार समिति (Bazar Samiti) में स्थित थी। इसका अर्थ है कि उसकी आजीविका दुकान संचालन पर आधारित थी, न कि शारीरिक परिश्रम पर पूरी तरह निर्भर।
  2. आयकर रिटर्न: यह तथ्य कि घायल व्यक्ति आयकर रिटर्न दाखिल कर रहा था, यह संकेत करता है कि वह संगठित और व्यवस्थित व्यापार में संलग्न था।
  3. व्यवसाय की निरंतरता की संभावना: भले ही उसे अब फल बेचने में कठिनाई हो रही है, परंतु दुकान का संचालन कर्मचारी नियुक्त कर किया जा सकता है। अतः पूर्ण व्यवसाय का नुकसान नहीं हुआ है।
  4. वास्तविक प्रभाव: इस आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि यद्यपि उसकी आय प्रभावित होगी और उसे श्रमिक नियुक्त करना पड़ेगा, परंतु यह स्थिति 100% कार्यात्मक विकलांगता के स्तर तक नहीं पहुँचती।

न्यायालय द्वारा आकलित कार्यात्मक विकलांगता:

इन सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने घायल की कार्यात्मक विकलांगता को 60% आंका।

महत्वपूर्ण सिद्धांत:

इस निर्णय ने कार्यात्मक विकलांगता की गणना के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया:

  • कार्यात्मक विकलांगता की गणना केवल इस आधार पर नहीं की जा सकती कि घायल व्यक्ति अपनी पुरानी आजीविका नहीं कर सकता।
  • यह देखा जाना चाहिए कि घायल व्यक्ति विकल्प के रूप में कोई अन्य साधन से अपनी आय जारी रख सकता है या नहीं।
  • न्यायसंगत मुआवजा देने के लिए यह जरूरी है कि विकलांगता का वास्तविक, व्यावसायिक और व्यावहारिक प्रभाव देखा जाए।

निष्कर्ष:

Sunil Kumar Khushwaha बनाम Katragadda Satyanarayana निर्णय उन सभी मामलों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है, जहाँ मुआवजे के निर्धारण के लिए कार्यात्मक विकलांगता का आकलन किया जाना होता है। यह स्पष्ट करता है कि न्यायालय केवल शारीरिक अक्षमता को नहीं, बल्कि आर्थिक और वास्तविक प्रभावों को भी संतुलित रूप से देखकर निर्णय लेगा।

यह निर्णय न केवल MACT मामलों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि विकलांगता और मुआवजे के बीच संतुलन स्थापित करने में न्यायिक विवेक की परिपक्वता का भी उत्कृष्ट उदाहरण है।