“हरजिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य: अलिबी की दलील और धारा 319 सीआरपीसी के तहत अभियोजन में सम्मिलन – एक न्यायिक परीक्षण”

“हरजिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य: अलिबी की दलील और धारा 319 सीआरपीसी के तहत अभियोजन में सम्मिलन – एक न्यायिक परीक्षण”


परिचय

सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय Harjinder Singh v. State of Punjab & Others, 2025 (SLP (Cri.) No. 1891/2024) में न्यायालय ने भारतीय आपराधिक विधि की दो महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं — प्लिया ऑफ अलिबी (Plea of Alibi) तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 (Section 319 CrPC) — के बीच संतुलन पर महत्वपूर्ण व्याख्या की। इस निर्णय में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जब तक अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत की गई अलिबी की सामग्री विधिवत परीक्षण नहीं कर ली जाती, तब तक उसे अभियोजन की कार्यवाही में अवरोध नहीं बनाया जा सकता।


धारा 319 सीआरपीसी का सारांश

भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को भी अभियोजन में सम्मिलित कर सके जो प्रथम दृष्टया अपराध में संलिप्त प्रतीत हो, भले ही उसका नाम FIR या चार्जशीट में न हो। यह प्रावधान अभियोजन की पूर्णता सुनिश्चित करता है और अपराध में लिप्त सभी संभावित व्यक्तियों को न्यायिक प्रक्रिया में लाने का माध्यम प्रदान करता है।


प्रकरण की संक्षिप्त पृष्ठभूमि

हरजिंदर सिंह द्वारा दायर याचिका में यह दावा किया गया कि वह अपराध के समय घटनास्थल पर मौजूद नहीं था, और इस प्रकार उसे अभियुक्त के रूप में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने बचाव में कुछ दस्तावेज़ों — जैसे पार्किंग चिट, केमिस्ट की रसीद, ओपीडी कार्ड, और सीसीटीवी फुटेज — प्रस्तुत किए, जिनसे उनका दावा था कि वह उस समय अस्पताल परिसर में था।


अदालत की विवेचना: अलिबी की दलील पर विचार

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अलिबी (Alibi) की दलील रक्षा का एक माध्यम है, जिसका बोझ पूरा-पूरा अभियुक्त पर होता है। जब तक अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज विधिवत रूप से अदालत में प्रमाणित नहीं हो जाते, तब तक वे “कागज़ के टुकड़ों” से अधिक महत्व नहीं रखते।

न्यायालय ने टिप्पणी की:

“To treat them as conclusive at the threshold, would invert the established order of criminal proceedings.”

इसका तात्पर्य यह है कि यदि अदालत शुरू में ही इन दस्तावेजों को अंतिम और निर्णायक मान लेती, तो यह आपराधिक प्रक्रिया की मौलिक संरचना को उलट देता — जहाँ पहले अभियोजन को अपना पक्ष पूर्ण रूप से प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है और उसके बाद ही प्रतिरक्षा की बारी आती है।


न्यायालय का निर्णय
  • प्लिया ऑफ अलिबी को प्रारंभिक अवस्था में ही खारिज कर दिया गया।
  • धारा 319 CrPC के अंतर्गत आवेदन स्वीकृत कर लिया गया।
  • परिणामस्वरूप, हरजिंदर सिंह को अतिरिक्त अभियुक्त के रूप में सम्मिलित कर आगे की प्रक्रिया जारी रखने का आदेश दिया गया।

न्यायिक सिद्धांत एवं प्रभाव

इस निर्णय में निम्नलिखित न्यायिक सिद्धांतों की पुनः पुष्टि हुई:

  1. अलिबी एक प्रतिरक्षा है, न कि अभियोजन से पूर्व निर्णायक आधार।
  2. साक्ष्य की विधिक पुष्टि के बिना उसे अंतिम मान लेना आपराधिक प्रक्रिया के विरुद्ध है।
  3. धारा 319 CrPC अभियोजन की निष्पक्षता और पूर्णता सुनिश्चित करने का साधन है, न कि प्रतिरक्षा के परीक्षण का मंच।

निष्कर्ष

Harjinder Singh v. State of Punjab निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने साफ शब्दों में यह निर्देश दिया कि अलिबी की दलील तब तक निर्णायक नहीं मानी जा सकती, जब तक उसका विधिवत परीक्षण न हो जाए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई अभियुक्त मात्र कुछ दस्तावेज प्रस्तुत करके न्यायिक जांच से बच न सके। यह निर्णय न केवल अभियोजन को पूरा अवसर देता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता, क्रमबद्धता और न्यायसंगत प्रवाह को बनाए रखने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।