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“बिना सहमति फोन वार्तालाप की रिकॉर्डिंग अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन: उच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय”
हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति की फोन पर हुई बातचीत को उसकी सहमति के बिना रिकॉर्ड करना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त ‘निजता के मूलभूत अधिकार’ का उल्लंघन भी है। अदालत ने इस बात पर बल दिया कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसकी अवहेलना केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही की जा सकती है, वह भी विधिक प्रक्रिया के तहत।
न्यायालय का तर्क:
अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ का अधिकार सिर्फ शारीरिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत जानकारी, संवाद, संचार और डिजिटल गोपनीयता को भी शामिल करता है। जब कोई व्यक्ति दूसरे की बातचीत को बिना उसकी सहमति के रिकॉर्ड करता है, तो वह न केवल उस व्यक्ति की निजता का हनन करता है, बल्कि उसे कानूनी परेशानी में भी डाल सकता है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया:
“फोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग, जब तक कि वह किसी न्यायिक या विधिक आदेश के तहत न की गई हो, गोपनीयता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।”
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
इस मामले में एक व्यक्ति ने शिकायत की थी कि उसके निजी फोन कॉल्स को उसकी सहमति के बिना रिकॉर्ड किया गया और बाद में कोर्ट में सबूत के तौर पर प्रस्तुत किया गया। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह कार्रवाई उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है और इस पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
अदालत ने क्या कहा:
- बिना सहमति रिकॉर्डिंग केवल विशेष परिस्थितियों में, जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा, अपराध की जांच, या अदालत द्वारा अनुमति प्राप्त मामलों में ही वैध हो सकती है।
- सामान्य परिस्थितियों में यह दंडनीय कृत्य माना जाएगा।
- यह भी माना गया कि इस प्रकार की रिकॉर्डिंगों को अदालत में प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, यदि वह व्यक्ति की सहमति के बिना की गई हो।
न्यायिक दृष्टिकोण का प्रभाव:
यह फैसला न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है, बल्कि यह डिजिटल युग में डेटा संरक्षण और व्यक्तिगत संवाद की सुरक्षा की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सोशल मीडिया, व्हाट्सएप कॉल्स, रिकॉर्डिंग ऐप्स, और अन्य संचार माध्यमों पर होने वाले संभावित उल्लंघनों पर भी प्रश्नचिह्न उठाता है।
निष्कर्ष:
उच्च न्यायालय का यह निर्णय निजता के संवैधानिक अधिकार की पुष्टि करता है और स्पष्ट करता है कि व्यक्तिगत संचार को रिकॉर्ड करने से पहले संबंधित व्यक्ति की सहमति आवश्यक है। यह न केवल एक कानूनी चेतावनी है, बल्कि समाज में एक नैतिक चेतना भी जगाता है कि हम सभी को एक-दूसरे की निजता का सम्मान करना चाहिए।
यह निर्णय आने वाले समय में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर होने वाले निजी वार्तालापों की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।