लेख शीर्षक: मृतक बेटे की संपत्ति में मां को भी समान अधिकार – राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
परिचय:
भारतीय समाज में अक्सर यह धारणा रही है कि मृतक व्यक्ति की संपत्ति का अधिकार केवल उसकी पत्नी और बच्चों को होता है। किंतु राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए इस भ्रम को तोड़ा है और स्पष्ट किया है कि मां को भी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अंतर्गत प्रथम श्रेणी उत्तराधिकारी के रूप में समान अधिकार प्राप्त हैं। यह फैसला न केवल विधिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी वृद्ध माताओं के संरक्षण की दिशा में एक सशक्त कदम है।
मामले का संक्षिप्त विवरण:
- यह मामला हेमलता शर्मा द्वारा दायर याचिका से संबंधित है, जो अपने मृतक पुत्र आनंद शर्मा की बीमा राशि में हिस्सेदारी की मांग कर रही थीं।
- मृतक आनंद ने कोई वसीयत नहीं बनाई थी, और उसके बीमा क्लेम की राशि 1.07 करोड़ रुपये थी।
- जिला न्यायालय ने आंशिक रूप से मां को नामांकित नहीं किए गए अंश में हकदार माना था, जिसे हेमलता ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
- न्यायमूर्ति गणेशराम मीणा की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए यह महत्वपूर्ण आदेश पारित किया।
न्यायालय का निर्णय:
- अदालत ने स्पष्ट किया कि मृतक की संपत्ति, जिसमें बीमा की राशि भी शामिल है, में मां को बेटे और पत्नी के बराबर का तिहाई हिस्सा मिलना चाहिए।
- न्यायालय ने हेमलता शर्मा को मृतक की बीमा राशि में से 35.92 लाख रुपये प्रदान करने के निर्देश दिए।
- यह भी कहा गया कि यदि मृतक व्यक्ति ने कोई वसीयत नहीं बनाई है, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होगा, जिसके तहत मां, पत्नी, बेटा और बेटी प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी माने जाते हैं।
कानूनी प्रावधान:
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 के अंतर्गत, यदि कोई हिंदू पुरुष बिना वसीयत बनाए मर जाता है, तो उसकी संपत्ति प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में वितरित की जाती है। इसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:
- विधवा (पत्नी)
- पुत्र
- पुत्री
- माता
इस अधिनियम के अनुसार, सभी प्रथम श्रेणी उत्तराधिकारियों को समान हिस्सेदारी का अधिकार प्राप्त होता है।
फैसले का महत्व:
- वरिष्ठ नागरिकों का संरक्षण: यह निर्णय वृद्ध माताओं के आर्थिक अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें पारिवारिक उपेक्षा से बचाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करता है।
- नामांकित व्यक्ति बनाम उत्तराधिकारी: भले ही बीमा पॉलिसी में पत्नी को नामांकित किया गया हो, नामांकन का अर्थ संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व नहीं होता; यह केवल बीमा की राशि प्राप्त करने का माध्यम है। संपत्ति का वितरण उत्तराधिकार कानून के अनुसार ही होगा।
- सामाजिक सशक्तिकरण: यह फैसला उन बुज़ुर्ग महिलाओं के लिए आशा की किरण है जो पारिवारिक उत्पीड़न या संपत्ति से वंचित किए जाने की स्थिति में हैं।
निष्कर्ष:
राजस्थान उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल विधिक रूप से सटीक और न्यायपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रगतिशील और मानवतावादी है। यह स्पष्ट रूप से स्थापित करता है कि मां, जो कि जीवनदाता होती है, वह भी बेटे की संपत्ति में उतनी ही हकदार है जितनी उसकी पत्नी या संतान। यह फैसला उन सभी माताओं को एक मजबूत कानूनी आधार प्रदान करता है जो पारिवारिक संरचना में अक्सर अपने अधिकारों से अनभिज्ञ या वंचित रहती हैं।