इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में अश्लील सामग्री का प्रकाशन: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 का विश्लेषण

लेख शीर्षक: इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में अश्लील सामग्री का प्रकाशन: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 का विश्लेषण

परिचय:

डिजिटल युग में इंटरनेट और अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का तेजी से विस्तार हुआ है। इसके साथ ही साइबर अपराधों की संख्या भी बढ़ी है, विशेषकर अश्लील सामग्री के प्रसार के मामलों में। इस चुनौती से निपटने के लिए भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) को अधिनियमित किया। इस अधिनियम की धारा 67 (Section 67) विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण को दंडनीय अपराध घोषित करती है।

धारा 67 का मूल प्रावधान (Section 67 – Punishment for publishing or transmitting obscene material in electronic form):

“यदि कोई व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक रूप में कोई ऐसा सामग्री प्रकाशित करता है या प्रसारित करता है जो कि अश्लील है, या ऐसा कोई कार्य करता है जिससे वह सामग्री किसी व्यक्ति द्वारा देखी या पढ़ी जा सके, तो वह प्रथम दोषसिद्धि पर अधिकतम तीन वर्ष का कारावास और पांच लाख रुपये तक जुर्माने का भागी होगा। दूसरी या बाद की दोषसिद्धि पर उसे अधिकतम पाँच वर्ष का कारावास और दस लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।”

मुख्य तत्व (Essential Elements) – धारा 67 के अंतर्गत:

  1. प्रकाशन या प्रसारण (Publishing or Transmitting): किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (जैसे वेबसाइट, सोशल मीडिया, ईमेल आदि) द्वारा।
  2. अश्लील सामग्री (Obscene Content): कोई भी ऐसा दृश्य, लेख, ऑडियो या वीडियो जो सामान्य नैतिकता और शालीनता के विरुद्ध हो।
  3. उद्देश्य: अगर जानबूझकर किया गया हो तो यह अपराध और अधिक गंभीर बनता है।

दंड (Punishment):

  • प्रथम अपराध: 3 वर्ष तक का कारावास + ₹5 लाख तक जुर्माना
  • द्वितीय या पश्चात अपराध: 5 वर्ष तक का कारावास + ₹10 लाख तक जुर्माना

महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत:

  • Avnish Bajaj v. State (Bazee.com case): इस केस में स्पष्ट किया गया कि किसी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के मालिक को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जब तक यह सिद्ध न हो कि उसने जानबूझकर या लापरवाही से अश्लील सामग्री को बढ़ावा दिया।

अन्य संबंधित धाराएं:

  • धारा 67A: यदि अश्लील सामग्री में यौन कृत्य (sexually explicit act) दर्शाया गया हो।
  • धारा 67B: बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री पर विशेष प्रावधान।
  • IPC की धारा 292 और 293: अश्लील सामग्री के मुद्रण और वितरण पर दंड।

प्रभाव और आलोचना:

  • यह धारा ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर नियंत्रण रखने का महत्वपूर्ण साधन बनी है, जिससे इंटरनेट को एक सुरक्षित माध्यम बनाए रखने की दिशा में मदद मिलती है।
  • हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इस धारा की परिभाषाएं कभी-कभी अस्पष्ट (vague) होती हैं, जिससे गलत दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने भी विभिन्न मामलों में स्पष्ट किया है कि यह धारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध नहीं है, लेकिन इसका दायरा सीमित और संतुलित होना चाहिए।

निष्कर्ष:

धारा 67 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो डिजिटल माध्यम में अश्लीलता को रोकने का कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह धारा न केवल समाज की नैतिकता की रक्षा करती है, बल्कि इंटरनेट को एक स्वस्थ और सुरक्षित मंच बनाए रखने में भी सहायक है। फिर भी, इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता, न्यायसंगतता और तकनीकी समझ की आवश्यकता है ताकि इसका दुरुपयोग न हो और असली अपराधियों को सज़ा मिले।