सिविल ट्रायल में साक्ष्य बंद करने का आदेश – न्यायिक दृष्टिकोण और वादी के अधिकारों की सुरक्षा

लेख शीर्षक: सिविल ट्रायल में साक्ष्य बंद करने का आदेश – न्यायिक दृष्टिकोण और वादी के अधिकारों की सुरक्षा

TEJENDER SINGH बनाम MAHAAN SINGH, 2025 PbHr (CR-862-2020 O&M)

परिचय:

भारतीय न्यायिक प्रणाली में निष्पक्ष सुनवाई और वादी को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का पूर्ण अवसर देना एक मूलभूत सिद्धांत है। सिविल ट्रायल के दौरान यदि किसी वादी को साक्ष्य प्रस्तुत करने का मौका बिना उसकी गलती के छीन लिया जाए, तो यह न केवल न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है, बल्कि वादी के संवैधानिक अधिकारों का भी हनन है। TEJENDER SINGH बनाम MAHAAN SINGH (2025) का यह मामला इसी विषय में एक महत्वपूर्ण मिसाल पेश करता है।

मामले की पृष्ठभूमि:

इस केस में वादी (Tejender Singh) अपनी ओर से एक महत्वपूर्ण गवाह को प्रस्तुत करना चाहता था। उस गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ट्रायल कोर्ट ने गैर-जमानती वारंट (Non-Bailable Warrants – NBW) जारी किए, परंतु ये वारंट बिना तामील हुए लौट आए। इसके बावजूद, ट्रायल कोर्ट ने वादी के साक्ष्य को बंद (close) कर दिया।

प्रमुख प्रश्न:

क्या ट्रायल कोर्ट द्वारा वादी की साक्ष्य को इस आधार पर बंद करना उचित था कि गवाह न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ, जबकि गैर-जमानती वारंट भी निष्फल रहे?

उच्च न्यायालय का निर्णय:

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि गवाह की अनुपस्थिति या NBW की तामील न हो पाना वादी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह ट्रायल कोर्ट की ओर से एक त्रुटिपूर्ण आदेश था, जिसमें वादी को उचित अवसर दिए बिना साक्ष्य को बंद कर दिया गया।

अतः न्यायालय ने:

  • ट्रायल कोर्ट द्वारा वादी के साक्ष्य बंद करने के आदेश को रद्द (set aside) कर दिया।
  • संशोधन याचिका (revision petition) को स्वीकृत (allowed) किया।
  • ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह वादी को गवाह की जिरह हेतु एक प्रभावी अवसर (effective opportunity) प्रदान करे और तिथि स्वयं निर्धारित करे।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. वादकारी की गलती नहीं: यदि न्यायालय द्वारा उठाए गए कदम जैसे NBW निष्फल रहते हैं, तो इसका दोष वादी को नहीं दिया जा सकता।
  2. प्राकृतिक न्याय: सिविल ट्रायल में वादी को साक्ष्य प्रस्तुत करने का उचित अवसर मिलना न्याय की मूलभूत शर्त है।
  3. उच्च न्यायालय की भूमिका: न्यायालयों का यह कर्तव्य है कि निचली अदालतों की प्रक्रिया में त्रुटियों को ठीक करें और न्याय को बहाल करें।

निष्कर्ष:

Tejender Singh बनाम Mahaan Singh का यह निर्णय भारतीय सिविल प्रक्रिया प्रणाली में न्याय के सिद्धांतों की पुष्टि करता है। यह दर्शाता है कि न्यायालयों को प्रक्रिया संबंधी जटिलताओं या तांत्रिक कारणों से वादी के अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि यदि वादी की ओर से कोई चूक न हो, तो उसे साक्ष्य प्रस्तुत करने का पूर्ण अवसर मिलना चाहिए।

यह मामला सभी वकीलों, न्यायाधीशों और वादियों के लिए एक मार्गदर्शक बनता है कि न्यायिक प्रक्रिया को न केवल कानूनी बल्कि नैतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी निष्पक्ष बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।