“न्याय की स्पष्ट धारा को कमजोर न करें: घरेलू हिंसा मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया”

शीर्षक:
“न्याय की स्पष्ट धारा को कमजोर न करें: घरेलू हिंसा मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया”


भूमिका:
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर न्यायिक सिद्धांतों की स्थिरता और न्यायिक निर्णयों की एकरूपता (consistency) के महत्व को रेखांकित किया है। Renuka बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामले में, शीर्ष न्यायालय ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक घरेलू हिंसा मामले को पति के विरुद्ध खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह आदेश पूर्ववर्ती निर्णयों की अवहेलना में पारित किया गया था, और इस प्रकार यह न्याय की स्पष्ट धारा को प्रभावित करने वाला और अस्वीकार्य है।


मामले की पृष्ठभूमि:
रेणुका नामक महिला द्वारा अपने पति और ससुराल पक्ष के अन्य सदस्यों के विरुद्ध घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज की गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान, कर्नाटक हाईकोर्ट ने पति के विरुद्ध मामला खारिज कर दिया, जबकि ससुराल पक्ष के अन्य सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही को बरकरार रखा गया।

हाईकोर्ट का यह निर्णय, एक पूर्ववर्ती निर्णय के प्रतिकूल था, जिसमें उसी तरह की परिस्थितियों में ससुराल पक्ष के सदस्यों के खिलाफ मुकदमे को जारी रखने की अनुमति दी गई थी। इसी विरोधाभास को लेकर रेणुका ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।


सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन और निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि:

  1. न्यायिक निर्णयों में एकरूपता और सुसंगतता (Consistency) अनिवार्य है। यदि समान परिस्थितियों में अलग-अलग निर्णय दिए जाते हैं, तो इससे न्याय व्यवस्था में जनता का विश्वास डगमगा सकता है।
  2. कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा पति के विरुद्ध मामला खारिज करना तर्कसंगत नहीं था, क्योंकि इससे पहले दिए गए फैसले में इसी तरह के तथ्यों के आधार पर कार्यवाही को आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी।
  3. यह निर्णय न्यायिक अनुशासन (judicial discipline) और स्थिर विधिक दृष्टिकोण के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों को अपने पूर्ववर्ती निर्णयों से भटकना नहीं चाहिए, विशेष रूप से तब जब उन निर्णयों में स्पष्ट मार्गदर्शन दिया गया हो।
  4. घरेलू हिंसा अधिनियम, महिलाओं को घरेलू प्रताड़ना से संरक्षण देने का एक सशक्त माध्यम है, और इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों को प्रारंभिक स्तर पर तकनीकी आधारों पर खारिज करना न्याय के अधिकार से वंचित करने जैसा है।

न्याय की स्पष्ट धारा का महत्व:
सुप्रीम कोर्ट ने न्याय की “clear stream” की अवधारणा का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि विभिन्न न्यायालय अपने पूर्व निर्णयों से भिन्न-भिन्न तरीके से व्यवहार करते हैं, तो इससे कानून में असमंजस की स्थिति पैदा होती है, जिससे आमजन में यह धारणा बन सकती है कि न्याय की प्रक्रिया स्पष्ट और निष्पक्ष नहीं है


निष्कर्ष:
Renuka बनाम राज्य कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल घरेलू हिंसा मामलों की संवेदनशीलता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायालयों को न्यायिक अनुशासन और पूर्व निर्णयों के प्रति सजग रहना चाहिए। इससे न्याय प्रक्रिया में भरोसा बना रहता है और पीड़ित पक्ष को न्याय मिलने की संभावनाएं सुदृढ़ होती हैं। इस निर्णय से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि न्यायिक एकरूपता ही न्याय की आत्मा है।