मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा उस न्यायाधीश की सेवा समाप्ति को क्यों उचित ठहराया गया जिसने वकीलों और पुलिसकर्मियों से उठक-बैठक लगवाई थी? इस निर्णय का विश्लेषण करें।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने दिनांक 7 मई 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक सिविल न्यायाधीश, कौस्तुभ खेरा, की सेवा समाप्ति को वैध ठहराया। यह मामला न्यायिक सेवा की मर्यादा, अनुशासन, और अधिकारियों की उपयुक्तता के मूल्यांकन से संबंधित था। न्यायाधीश खेरा पर आरोप था कि उन्होंने वकीलों और पुलिसकर्मियों को उठक-बैठक लगवाने या कान पकड़वाकर माफी मंगवाने जैसी अमर्यादित कार्यवाहियों को अपनाया, जो कि न्यायिक गरिमा के प्रतिकूल है।
मामले की पृष्ठभूमि:
- न्यायाधीश कौस्तुभ खेरा के विरुद्ध आरोप थे कि उन्होंने अवमानना की कार्यवाही में वकीलों और पुलिसकर्मियों से दंडस्वरूप सार्वजनिक रूप से शारीरिक दंड दिलवाया।
- उनकी इस कार्यशैली को उनके उच्च अधिकारियों ने न्यायिक गरिमा और मर्यादा के विरुद्ध माना।
- इसके परिणामस्वरूप उन्हें सेवा से “असंतोषजनक कार्य निष्पादन” के आधार पर मुक्त कर दिया गया।
- यह निर्णय पूर्ण पीठ (Full Court) द्वारा लिया गया, जो उच्च न्यायिक अधिकारियों का एक सामूहिक निर्णय होता है।
याचिकाकर्ता का पक्ष:
न्यायाधीश खेरा ने उच्च न्यायालय में यह कहते हुए याचिका दायर की कि उन्हें RTI के माध्यम से पता चला कि उनकी सेवा समाप्ति अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत की गई है।
उन्होंने तर्क दिया कि अगर ऐसा था, तो उन्हें कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) दिया जाना चाहिए था और अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए था।
न्यायालय का निर्णय:
मुख्य न्यायाधीश एस.के. कौल और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि—
- यह सेवा समाप्ति “Discharge Simpliciter” थी, जिसका अर्थ है कि यह बिना किसी आरोप या दंडात्मक प्रक्रिया के केवल प्रशासनिक विवेकाधिकार के तहत की गई थी।
- सेवा समाप्ति के आदेश में कहीं भी “misconduct” (दुराचार) का उल्लेख नहीं किया गया है, अतः यह दंडात्मक कार्रवाई नहीं मानी जा सकती।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी अधिकारी की दीर्घकालिक उपयुक्तता, कार्यकुशलता और आचरण का मूल्यांकन उस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किया जाता है और यह उनके विवेक पर आधारित होता है।
- न्यायालय के अनुसार, यह तय करना कि कोई अधिकारी न्यायिक सेवा के लिए उपयुक्त है या नहीं, न्यायपालिका के आंतरिक प्रशासनिक अधिकार के अंतर्गत आता है।
न्यायालय की टिप्पणी:
“दुराचार के लिए दंडात्मक कार्रवाई एक अलग प्रक्रिया है, जबकि किसी अधिकारी के उपयुक्त होने या न होने का निर्णय प्रशासनिक मूल्यांकन पर आधारित होता है। यह कार्य न्यायपालिका के वरिष्ठ अधिकारी करते हैं जो संबंधित अधिकारी से सीधे कार्य कराते हैं।”
निष्कर्ष:
यह निर्णय बताता है कि न्यायिक सेवा में कार्य कर रहे अधिकारियों से उच्च स्तर की मर्यादा, अनुशासन और गरिमा की अपेक्षा की जाती है। यदि कोई अधिकारी इस मानक पर खरा नहीं उतरता, तो उसे सेवा से मुक्त किया जा सकता है, भले ही उसके विरुद्ध औपचारिक दंडात्मक कार्रवाई न की गई हो।
यह मामला प्रशासनिक विवेक और न्यायिक गरिमा के संतुलन का भी एक उदाहरण है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सेवा समाप्ति केवल तभी गैरकानूनी मानी जा सकती है जब वह स्पष्ट रूप से दंडात्मक हो और उसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हो।
अतः न्यायालय ने न्यायाधीश कौस्तुभ खेरा की याचिका खारिज करते हुए सेवा समाप्ति को उचित एवं वैधानिक ठहराया।