“लंबे और निरंतर कब्जे का सम्मान: INDER SINGH बनाम JAGBIR & ORS, 2025 में स्थायी निषेधाज्ञा की वैधानिक पुष्टि”

“लंबे और निरंतर कब्जे का सम्मान: INDER SINGH बनाम JAGBIR & ORS, 2025 में स्थायी निषेधाज्ञा की वैधानिक पुष्टि”

परिचय
INDER SINGH बनाम JAGBIR & ORS (PbHr RSA-5674-2018, O&M), में 2025 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय भारत में संपत्ति अधिकारों और दीर्घकालिक कब्जे के अधिकार की दिशा में एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में सामने आया। इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि भले ही कब्जाधारी व्यक्ति संपत्ति का वैधानिक स्वामी न हो, फिर भी यदि उसका कब्जा लंबे समय से निरंतर और बिना रुकावट के बना हुआ है, तो उसे बिना विधिक प्रक्रिया के बेदखल नहीं किया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि
वादकर्ता (plaintiffs) ने स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) की मांग करते हुए यह दावा किया कि वे विवादित भूमि पर लंबे समय से काबिज हैं और प्रतिवादियों (defendants) द्वारा उन्हें उस भूमि से हटाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रतिवादी पक्ष ने अपने स्वामित्व (Ownership) का हवाला देते हुए दावा किया कि वे उस भूमि के वैध मालिक हैं और इसलिए कब्जाधारियों को निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती।

न्यायालय की युक्ति
माननीय उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित आधारों पर वादकर्ताओं के पक्ष में निर्णय दिया:

  1. लंबे समय से निरंतर कब्जा: रिकॉर्ड पर पर्याप्त और ठोस साक्ष्य उपलब्ध थे, जिनसे यह सिद्ध होता था कि वादकर्ता लंबे समय से स्थायी रूप से विवादित भूमि पर कब्जा किए हुए हैं।
  2. बेदखली का कोई प्रमाण नहीं: प्रतिवादियों ने यह दावा नहीं किया कि वादकर्ताओं को कभी कब्जे से हटाया गया हो। इससे यह स्पष्ट होता है कि कब्जा शांतिपूर्ण, अविरत और अविरोध था।
  3. संपत्ति शीर्षक (Title) विवाद का विषय नहीं: यह वाद केवल स्थायी निषेधाज्ञा के लिए था, जिसमें संपत्ति के स्वामित्व का प्रश्न नहीं उठाया गया था। अतः प्रतिवादियों द्वारा स्वामित्व के आधार पर निषेधाज्ञा से इनकार की दलील स्वीकार नहीं की गई।
  4. कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक: न्यायालय ने यह आदेश दिया कि प्रतिवादी वादकर्ताओं के कब्जे में हस्तक्षेप नहीं कर सकते जब तक कि वे उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाकर ऐसा न करें।

न्यायालय का निर्णय
माननीय उच्च न्यायालय ने वादकर्ताओं के पक्ष में स्थायी निषेधाज्ञा पारित करते हुए प्रतिवादियों को यह निर्देश दिया कि वे वादकर्ताओं को केवल विधिसम्मत प्रक्रिया द्वारा ही बेदखल कर सकते हैं, अन्यथा नहीं।

कानूनी महत्त्व
यह निर्णय न्यायिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह निम्न बातों को पुष्ट करता है:

  • केवल स्वामित्व का दावा पर्याप्त नहीं होता, यदि प्रत्यक्ष कब्जा किसी अन्य के पास लंबे समय से है।
  • भारतीय कानून में “Possession is nine-tenths of the law” की अवधारणा को बल मिलता है।
  • बिना न्यायिक आदेश के जबरन कब्जा हटाना कानून की अवहेलना माना जाएगा।

निष्कर्ष
INDER SINGH बनाम JAGBIR & ORS (2025) का यह निर्णय भारतीय संपत्ति कानून की उस भावना को बल देता है जो कब्जे की वैधानिकता, शांति और स्थायित्व को मान्यता देता है। यह फैसला बताता है कि न्याय केवल स्वामित्व का समर्थन नहीं करता, बल्कि अधिकारों की व्यावहारिक स्थिति और भूमि के वास्तविक उपयोगकर्ताओं के संरक्षण की भी गारंटी देता है।