शीर्षक: “सिर्फ़ गिरफ्तारी ज्ञापन नहीं, गिरफ्तारी के आधारों की आपूर्ति अनिवार्य: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय”
प्रस्तावना:
12 मई 2025 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवैधानिक दृष्टि से निर्णायक फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि केवल “Memo of Arrest” यानी गिरफ्तारी ज्ञापन की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है। यदि किसी आरोपी को उसकी गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए जाते हैं, तो यह उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह निर्णय विशेष रूप से NDPS (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) अधिनियम से जुड़े एक मामले में दिया गया, जहां आरोपी की गिरफ्तारी को कोर्ट ने निरस्त कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि:
NDPS अधिनियम के तहत एक आरोपी को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उसे गिरफ्तारी के वास्तविक और ठोस आधारों की जानकारी नहीं दी गई थी। पुलिस ने केवल गिरफ्तारी ज्ञापन सौंपकर प्रक्रिया पूरी मान ली थी। आरोपी ने इस कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद 22(1) और 21 के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए गिरफ्तारी को अवैध ठहराया और उसे निरस्त कर दिया।
मुख्य बिंदु:
1. अनुच्छेद 22(1) की व्याख्या:
संविधान का अनुच्छेद 22(1) स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को ‘तत्काल’ उसके गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराना होगा। इसे मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा गया है। मात्र एक कानूनी औपचारिकता के तहत गिरफ्तारी ज्ञापन सौंप देना इस अधिकार की पूर्ति नहीं करता।
2. पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की टिप्पणी:
माननीय न्यायालय ने कहा कि,
“Memo of Arrest is not a substitute for grounds of arrest. A person has the right to know why he is being arrested, and non-supply of such reasons is a direct assault on the constitutional safeguards guaranteed under Article 22(1) and 21 of the Constitution of India.”
(“गिरफ्तारी ज्ञापन गिरफ्तारी के आधारों का विकल्प नहीं हो सकता। किसी व्यक्ति को यह जानने का अधिकार है कि उसे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है, और इस जानकारी को न देना संविधान के अनुच्छेद 22(1) और 21 के तहत प्रदत्त सुरक्षा पर सीधा प्रहार है।”)
3. मौलिक अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका:
यह निर्णय इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि भारतीय न्यायपालिका नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है, विशेषतः तब जब पुलिस या अन्य सरकारी एजेंसियां अधिकारों के दुरुपयोग की ओर बढ़ती हैं। यह निर्णय NDPS जैसे कठोर कानूनों में भी संवैधानिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास है।
4. गिरफ्तारी के आधारों की सूचना का महत्व:
गिरफ्तारी के वास्तविक आधार बताए बिना, आरोपी को अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने का कोई मौका नहीं मिलता। यह उसकी न्याय तक पहुंच और उचित प्रतिनिधित्व के अधिकार को प्रभावित करता है। कोर्ट ने इस बात पर बल दिया कि गिरफ्तारी के समय उचित सूचना देना केवल प्रक्रिया नहीं, बल्कि अधिकार है।
5. भविष्य के मामलों पर प्रभाव:
यह फैसला NDPS और अन्य कठोर कानूनों जैसे UAPA, PMLA आदि के तहत की जाने वाली गिरफ्तारियों के मामलों में मिसाल बन सकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि गिरफ्तारी केवल औपचारिकता न रह जाए, बल्कि संविधान सम्मत प्रक्रिया का पालन हो।
निष्कर्ष:
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का 12 मई 2025 का यह फैसला भारतीय लोकतंत्र और विधि शासन (Rule of Law) की भावना को सुदृढ़ करता है। यह निर्णय बताता है कि मौलिक अधिकारों की रक्षा केवल संविधान का दायित्व नहीं, बल्कि प्रत्येक न्यायालय और न्यायाधीश की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी भी है। NDPS जैसे मामलों में भी यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी कानून नागरिक के मौलिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता।