रिटायर्ड न्यायाधीशों के अधिकारों की उपेक्षा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: छह राज्यों के मुख्य सचिवों को अवमानना नोटिस जारी

शीर्षक: रिटायर्ड न्यायाधीशों के अधिकारों की उपेक्षा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: छह राज्यों के मुख्य सचिवों को अवमानना नोटिस जारी

परिचय:

भारतीय न्यायपालिका के स्तंभ, न्यायाधीशों को न केवल सेवा में रहते हुए बल्कि सेवा निवृत्ति के बाद भी विशेष सम्मान, सुविधाएं और अधिकार प्राप्त होते हैं। यह न केवल उनके गरिमामय पद के कारण होता है, बल्कि इसलिए भी कि वे संविधान के संरक्षक रहे हैं और उन्होंने कानून के शासन की रक्षा की है। किंतु जब रिटायर्ड जजों के वैधानिक और न्यायिक रूप से स्वीकृत अधिकारों की अनदेखी होती है, तो यह न केवल उनके साथ अन्याय है, बल्कि न्यायिक आदेशों की भी अवमानना मानी जाती है।

मामले की पृष्ठभूमि:

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीशों को चिकित्सा सुविधाएं, पेंशन भत्ते और अन्य लाभ समय पर और विधिवत रूप से प्रदान किए जाएं। यह निर्देश देशभर के सभी राज्यों पर लागू होता है। फिर भी कुछ राज्य सरकारें इन निर्देशों का पालन करने में विफल रही हैं।

अवमानना की कार्यवाही:

सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई 2025 को इस संबंध में बड़ी कार्यवाही करते हुए छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और दिल्ली राज्यों के मुख्य सचिवों को अवमानना नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने इन राज्यों द्वारा पूर्व के न्यायिक आदेशों की अवहेलना पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इन राज्यों ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जजों को चिकित्सा सुविधाएं और अन्य भत्ते न देकर न्यायालय के निर्देशों का सीधा उल्लंघन किया है। इस कारण इन राज्यों के मुख्य सचिवों को यह स्पष्ट करना होगा कि उनके विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए।

न्यायालय की टिप्पणी और रुख:

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि—

“यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायिक सेवा में दशकों तक योगदान देने वाले पूर्व न्यायाधीशों को उनके वाजिब अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। राज्यों की यह उदासीनता न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मामले को अत्यंत गंभीरता से लिया जाएगा और यदि उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया, तो संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।

महत्त्व और व्यापक प्रभाव:

यह आदेश केवल तकनीकी अवमानना का मामला नहीं है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था के पूर्व सेवकों की गरिमा की रक्षा से जुड़ा हुआ है। रिटायर्ड जजों को चिकित्सा सुविधा, यात्रा भत्ता, आवासीय लाभ, सचिवीय सहायता आदि सुविधाएं एक निर्धारित व्यवस्था के तहत मिलनी चाहिए। यदि राज्यों द्वारा इन्हें रोका जाता है या अनदेखा किया जाता है, तो यह न केवल संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है बल्कि न्यायिक अवमानना का स्पष्ट मामला भी है।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह कदम एक सशक्त संदेश है कि न्यायिक आदेशों की अवहेलना को किसी भी स्तर पर सहन नहीं किया जाएगा, चाहे वह किसी राज्य का प्रशासन ही क्यों न हो। रिटायर्ड न्यायाधीशों को उनके अधिकार देना केवल एक प्रशासनिक दायित्व नहीं, बल्कि यह न्याय व्यवस्था में विश्वास की पुन: पुष्टि भी है।

यह प्रकरण इस ओर भी संकेत करता है कि राज्य सरकारों को न्यायपालिका के निर्णयों का यथासमय पालन सुनिश्चित करना चाहिए ताकि संवैधानिक संस्थानों का सम्मान बना रहे और जनता का भरोसा भी न्याय व्यवस्था में अडिग रहे।