शीर्षक: सूचना के अधिकार की अवहेलना पर हाई कोर्ट की सख्ती: राज्य सूचना आयोग को अवमानना का नोटिस, फिल्ममेकर नीरज निगम की याचिका पर सुनवाई
परिचय:
भारत में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005, नागरिकों को पारदर्शिता और जवाबदेही का सशक्त माध्यम प्रदान करता है। यह अधिनियम सरकारी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वे सरकार से किसी भी प्रकार की सूचना मांग सकें। किंतु जब सरकार या संबंधित प्राधिकरण इस अधिनियम की अवहेलना करते हैं, तो यह न केवल लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि न्यायिक अवमानना का गंभीर मामला भी बनता है।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर के समक्ष आया, जिसमें सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी देने में विफल रहने पर राज्य सूचना आयोग के सचिव एवं लोक सूचना अधिकारी को कोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी किया है।
मामले की पृष्ठभूमि:
भोपाल निवासी फिल्ममेकर नीरज निगम ने 26 मार्च 2019 को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन दायर किया था। निर्धारित 30 दिनों की अवधि में भी उन्हें कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने राज्य सूचना आयोग, भोपाल में अपील दायर की, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया।
इस पर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय की शरण ली। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए न केवल राज्य सूचना आयोग की आलोचना की बल्कि यह टिप्पणी भी की कि आयोग “सरकार के एजेंट की तरह” कार्य करता दिखाई दे रहा है। न्यायालय ने आयोग को निर्देश दिया कि मांगी गई सूचना प्रदान की जाए और 4000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना:
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने न्यायालय को अवगत कराया कि पूर्व में पारित आदेश के बावजूद न तो जानकारी दी गई और न ही सूचना देने की प्रक्रिया शुरू की गई। हालांकि जुर्माना राशि जमा कर दी गई थी, फिर भी न्यायालय के स्पष्ट आदेश का पालन नहीं किया गया।
अवमानना की कार्यवाही:
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की अदालत में हुई। उन्होंने उच्च न्यायालय के पूर्व आदेश के पालन में देरी और अवहेलना को गंभीरता से लिया और आश्चर्य व्यक्त किया कि जुर्माना आदेश के बावजूद सूचना नहीं दी गई। इसके पश्चात न्यायालय ने राज्य सूचना आयोग, भोपाल के सचिव और लोक सूचना अधिकारी को अवमानना का नोटिस जारी किया और उनसे स्पष्टीकरण मांगा है।
न्यायिक महत्त्व और व्यापक प्रभाव:
यह निर्णय सूचना के अधिकार को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जब स्वयं सूचना आयोग ही अधिनियम का पालन नहीं करता, तो यह पूरी व्यवस्था की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। यह मामला इस बात का भी उदाहरण है कि न्यायालय RTI अधिनियम को केवल एक तकनीकी औजार नहीं बल्कि नागरिक अधिकार के रूप में देखता है, जिसकी रक्षा करना उसका कर्तव्य है।
निष्कर्ष:
फिल्ममेकर नीरज निगम द्वारा दायर की गई याचिका और उसके आधार पर उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सूचना आयोग को जारी किया गया अवमानना नोटिस, भारत में सशक्त नागरिक अधिकारों और न्यायिक निगरानी की प्रबल मिसाल है। यह निर्णय उन सभी नागरिकों के लिए एक प्रेरणा है जो अपने अधिकारों के संरक्षण हेतु न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने का साहस रखते हैं। साथ ही, यह अधिकारियों को भी यह संदेश देता है कि सूचना छिपाने या न्यायिक आदेशों की अवहेलना करने पर कठोर दंड भुगतना पड़ सकता है।