बिना पर्याप्त कारण पति से अलग रहने पर नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता: पारिवारिक न्यायालय का निर्णय

शीर्षक: बिना पर्याप्त कारण पति से अलग रहने पर नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता: पारिवारिक न्यायालय का निर्णय

भूमिका:
भरण-पोषण से संबंधित मामलों में भारतीय न्यायालयों का दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करना होता है कि पीड़ित पक्ष को न्याय मिले, लेकिन साथ ही यह भी देखा जाता है कि कोई पक्ष भरण-पोषण के प्रावधानों का दुरुपयोग न करे। हाल ही में कानपुर के पारिवारिक न्यायालय द्वारा दिया गया एक फैसला इसी सिद्धांत को उजागर करता है, जिसमें न्यायालय ने बिना पर्याप्त कारण के पति से अलग रह रही पत्नी को स्थायी भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया।

प्रकरण का विवरण:
किदवई नगर, कानपुर निवासी एक युवती ने दिल्ली निवासी अपने शिक्षक पति के विरुद्ध भरण-पोषण का मुकदमा दाखिल किया था। युवती ने अपने आवेदन में दावा किया कि उसका विवाह 22 जनवरी 2018 को हुआ था और वह अपने पति के साथ नहीं रह रही है। महिला ने अदालत से अनुरोध किया कि उसे 40,000 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता दिलाया जाए, क्योंकि वह अपने माता-पिता पर निर्भर है।

पति का पक्ष:
पति ने अदालत में अपने ऊपर लगे मारपीट के आरोपों को नकारते हुए कहा कि पत्नी ने उस पर झूठा आरोप लगाकर जान से मारने की नीयत का मामला दर्ज कराया और उसे थाने में बंद करा दिया। इसके बाद वह अपने बहनोई और अन्य रिश्तेदारों के साथ पति के घर पहुंची और वहाँ से 70,000 रुपये नकद तथा जेवर लेकर चली गई। वर्तमान में वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है।

अदालत का निर्णय:
कानपुर पारिवारिक न्यायालय के अपर प्रमुख न्यायाधीश मालोक कुमार की अदालत ने महिला द्वारा दायर भरण-पोषण की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि जब तक कोई वैध और पर्याप्त कारण न हो, तब तक पत्नी को पति से अलग रहने का अधिकार नहीं है और ऐसी स्थिति में उसे गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि जब तक यह मुकदमा विचाराधीन था, उस अवधि के लिए पहले से निर्धारित अंतरिम भरण-पोषण की राशि—1300 रुपये प्रति माह—फैसले की तिथि तक प्रदान की जाएगी।

न्यायिक दृष्टिकोण:
यह निर्णय भारतीय परिवार न्याय प्रणाली के उस पक्ष को दर्शाता है जहाँ न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि कानून का दुरुपयोग न हो। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यदि पत्नी बिना उचित कारण के अपने पति से अलग रहती है, तो वह भरण-पोषण की कानूनी सुविधा की पात्र नहीं मानी जा सकती।

निष्कर्ष:
यह मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है कि भरण-पोषण जैसे संवेदनशील मामलों में न्यायालय केवल भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेता है। यह फैसला समाज के लिए यह संदेश भी है कि पारिवारिक विवादों में न्याय के लिए पारदर्शिता और सत्य की प्रधानता आवश्यक है।