न्याय, संविधान और न्यायपालिका की भूमिका: पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश संजय किशन कौल से संवाद

शीर्षक: न्याय, संविधान और न्यायपालिका की भूमिका: पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश संजय किशन कौल से संवाद

प्रस्तावना
भारत के पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के साथ यह संवाद केवल एक साक्षात्कार नहीं, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था, संविधान और न्याय के गहरे मायनों पर एक ज्ञानवर्धक यात्रा है। उनके वर्षों के अनुभव, अदालती निर्णयों और वैचारिक दृष्टिकोण से यह बातचीत हर नागरिक, छात्र, वकील और न्याय-प्रेमी के लिए उपयोगी और प्रेरणादायक है।

न्याय का अर्थ और सामाजिक सरोकार
साक्षात्कार की शुरुआत न्याय के अर्थ से होती है। न्यायमूर्ति कौल स्पष्ट करते हैं कि न्याय केवल कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि यह नैतिकता, समानता और गरिमा का प्रश्न है। उनके अनुसार, “न्याय वह है जो समाज के अंतिम व्यक्ति को उसके अधिकार दिला सके, और यह तभी संभव है जब संवैधानिक मूल्य हमारे निर्णयों का आधार बनें।”

संविधान की सर्वोच्चता
न्यायमूर्ति कौल बार-बार इस बात पर बल देते हैं कि संविधान भारत का “जीवंत दस्तावेज़” है। यह सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि देश की आत्मा है। वे बताते हैं कि न्यायपालिका की भूमिका केवल कानून की व्याख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि संविधान की भावना की रक्षा करना भी उसका कर्तव्य है।

अदालतें और आम आदमी
उन्होंने इस विषय पर विशेष बल दिया कि अदालतें आम आदमी के लिए कैसे न्याय का माध्यम बन सकती हैं। उनका मानना है कि न्यायपालिका को अधिक सुलभ, संवेदनशील और तकनीकी रूप से सक्षम बनाना समय की आवश्यकता है। डिजिटल कोर्ट्स और ई-फाइलिंग जैसे कदमों को उन्होंने सकारात्मक दिशा बताया।

यादगार मुकदमे और सीखें
न्यायमूर्ति कौल ने अपने कार्यकाल की कुछ प्रमुख घटनाओं को साझा किया — जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े निर्णय, गोपनीयता के अधिकार पर ऐतिहासिक राय, और धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में न्यायपालिका की भूमिका। उन्होंने कहा कि “हर निर्णय एक सामाजिक संदेश देता है, और जज को इस जिम्मेदारी के साथ निर्णय देना चाहिए।”

विधि छात्रों और युवा वकीलों के लिए संदेश
न्यायमूर्ति कौल का युवाओं के लिए संदेश था — “कानून को केवल रोज़गार का साधन न समझें, यह न्याय की सेवा का माध्यम है। पढ़ें, सोचें, और संविधान को समझें, तभी आप एक सच्चे वकील बन सकते हैं।”

निष्कर्ष
यह बातचीत केवल कानून के तकनीकी पहलुओं पर नहीं, बल्कि न्याय की आत्मा, संविधान की गरिमा, और न्यायपालिका की सामाजिक जिम्मेदारी पर केंद्रित थी। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की बातों में गहराई, स्पष्टता और भविष्य की दिशा का बोध है। उनके अनुभव हमें यह समझाते हैं कि एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण केवल अदालतों से नहीं, बल्कि हर नागरिक की संवैधानिक समझ से होता है।