शीर्षक: “मौखिक वसीयत (Oral Will): दो गवाहों की उपस्थिति में मृत्यु से पहले की गई वसीयत की वैधता”
संदर्भ: Indian Succession Act, 1925 की धारा 63
परिचय:
भारत में वसीयत (Will) एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति के बंटवारे को लेकर मृत्यु के पश्चात निर्देश देता है। आमतौर पर वसीयत लिखित होती है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में मौखिक (Oral) वसीयत को भी मान्यता दी गई है। विशेष रूप से यदि कोई व्यक्ति मृत्यु-शैया पर हो और उसने दो गवाहों की उपस्थिति में अपनी अंतिम इच्छाएं बताई हों, तो ऐसी वसीयत को भी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 63 के अंतर्गत मान्य माना जा सकता है।
Indian Succession Act, 1925 की धारा 63 का प्रावधान:
धारा 63 के अनुसार, वसीयत (Will) मान्य तभी मानी जाती है जब:
- वसीयत बनाने वाला व्यक्ति (Testator) साउंड माइंड में हो।
- वसीयत को उसके द्वारा या उसके निर्देश पर लिखा गया हो।
- वसीयत पर कम से कम दो गवाहों के हस्ताक्षर हों।
- प्रत्येक गवाह ने वसीयत को वसीयतकर्ता के समक्ष या उसके निर्देश पर हस्ताक्षर किया हो।
मौखिक वसीयत की वैधता:
- हालांकि धारा 63 सामान्यतः लिखित वसीयत पर लागू होती है, लेकिन “Privileged Will” के अंतर्गत मौखिक वसीयत को भी मान्यता दी गई है।
- Section 66 of the Indian Succession Act के तहत कुछ व्यक्ति, जैसे:
- सैन्य सेवक युद्ध के समय
- समुद्री जहाज़ पर उपस्थित नाविक
- मृत्यु के निकट व्यक्ति (on deathbed)
इनकी मौखिक वसीयत (Oral Will) को भी वैध माना गया है, यदि:
- वसीयत उनकी मृत्यु से पहले की गई हो, और
- उसमें कम से कम दो स्वतंत्र गवाह उपस्थित हों, जिन्होंने स्पष्ट रूप से उस अंतिम इच्छा को सुना हो।
महत्वपूर्ण शर्तें:
- मौखिक वसीयत केवल तभी वैध मानी जाएगी जब वह विश्वसनीय, स्पष्ट और गंभीर परिस्थिति में की गई हो।
- मौखिक वसीयत को लिखित रूप में जल्द से जल्द गवाहों द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए।
- कोर्ट इस प्रकार की वसीयत को बहुत सावधानी से जांचता है क्योंकि इसमें धोखे की संभावना अधिक होती है।
प्रासंगिक न्यायिक निर्णय:
- Rani Purnima Debi v. Kumar Khagendra Narayan Deb (1962 AIR 567, SC):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मौखिक वसीयत के पक्ष में स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय साक्ष्य हो, तो उसे वैध माना जा सकता है। - Ram Pyari v. Bhagwant (Allahabad HC):
अदालत ने दो स्वतंत्र गवाहों की गवाही को पर्याप्त माना और मौखिक वसीयत को मान्यता दी।
निष्कर्ष:
मौखिक वसीयत सामान्य मामलों में लिखित वसीयत के समकक्ष नहीं होती, लेकिन विशेष परिस्थितियों में, जैसे मृत्यु से पहले की गई इच्छाएं और गवाहों की उपस्थिति, उसे कानून द्वारा स्वीकार्यता दी जाती है। यह व्यवस्था विशेषकर उन लोगों के लिए है जिन्हें लिखित वसीयत बनाने का अवसर नहीं मिल पाता, परंतु उनकी अंतिम इच्छाओं का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए यह कानूनी मार्ग प्रदान किया गया है।