“स्थायी निषेधाज्ञा (Perpetual Injunction) की डिक्री की कोई समय सीमा नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्स्थापित की निष्पादन याचिका”

शीर्षक: “स्थायी निषेधाज्ञा (Perpetual Injunction) की डिक्री की कोई समय सीमा नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्स्थापित की निष्पादन याचिका”
(निर्णय दिनांक: 16 मई 2025)


परिचय:
सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई 2025 को दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि स्थायी निषेधाज्ञा (Perpetual Injunction) की डिक्री (Decree) की कोई वैधता समाप्ति तिथि (Expiry Date) नहीं होती और यह तब तक प्रभावी रहती है जब तक उसका उल्लंघन होता रहे या उसे न्यायालय द्वारा निरस्त न कर दिया जाए।
अदालत ने निष्पादन याचिका (Execution Petition) को केवल res judicata (पूर्व निर्णय द्वारा निषिद्ध) के आधार पर खारिज किए जाने को असंगत ठहराते हुए उसे पुनर्स्थापित (Restore) किया।


पृष्ठभूमि:
यह मामला एक दीवानी विवाद से संबंधित था जिसमें वादी (Plaintiff) ने अतीत में एक स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री प्राप्त की थी, जो प्रतिवादी को वादी की भूमि पर अतिक्रमण या हस्तक्षेप से रोकती थी। डिक्री पारित होने के कई वर्षों बाद वादी ने यह कहते हुए निष्पादन याचिका दायर की कि प्रतिवादी ने पुनः उस भूमि पर अतिक्रमण किया है।

हालांकि, निचली अदालत ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पहले एक निष्पादन याचिका खारिज हो चुकी है, अतः यह res judicata के सिद्धांत के तहत barred है।


सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने निचली अदालत के आदेश को खारिज करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:

  1. स्थायी निषेधाज्ञा की प्रकृति:
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि perpetual injunction की डिक्री की कोई समय सीमा नहीं होती। जब भी उसका उल्लंघन होता है, निष्पादन याचिका दाखिल की जा सकती है। इसे एक बार निष्पादित नहीं माना जा सकता क्योंकि यह डिक्री निष्क्रिय नहीं होती।
  2. Res Judicata का अपारूप प्रयोग:
    पीठ ने माना कि निष्पादन याचिका को res judicata के आधार पर खारिज करना गलत है, क्योंकि यह सिद्धांत एक ही विवाद को बार-बार उठाने से रोकता है, लेकिन जहाँ एक नया उल्लंघन होता है, वहाँ निषेधाज्ञा की पुनः पालना कराना पूर्णतः वैध है।
  3. न्यायसंगत निष्पादन अधिकार:
    न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि वादी को अपने वैध अधिकार की रक्षा के लिए डिक्री का सहारा लेने और निष्पादन करवाने का अधिकार है।

न्यायालय की टिप्पणी:

“A decree of perpetual injunction is timeless in nature. It protects a right continuously, and its enforcement cannot be barred by principles like res judicata when fresh violations occur.”


निर्णय का महत्व:
यह फैसला भारतीय दीवानी कानून में एक अहम दृष्टांत (precedent) के रूप में सामने आया है और यह निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट करता है:

  • स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री अंतिम और सतत प्रभाव वाली होती है।
  • डिक्री के बार-बार उल्लंघन पर बार-बार निष्पादन याचिका दायर की जा सकती है।
  • Res judicata का उपयोग तब नहीं किया जा सकता जब नई परिस्थितियाँ सामने आती हैं।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्थायी निषेधाज्ञा डिक्री के प्रभाव को समझने और लागू करने में न्यायपालिका को एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है। यह निर्णय इस सिद्धांत को स्थापित करता है कि एक बार दिए गए निषेधाज्ञा आदेश की प्रभावशीलता सीमित नहीं होती, और जब तक उसका उल्लंघन होता है, तब तक उसका पालन करवाना कानूनी रूप से वैध है।