शीर्षक: अनुच्छेद 22(2): गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी की संवैधानिक गारंटी
प्रस्तावना:
भारत का संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकारों के माध्यम से सुरक्षा की एक सशक्त ढाल प्रदान करता है। अनुच्छेद 22(2) संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो किसी भी व्यक्ति को पुलिस द्वारा मनमानी गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा प्रदान करता है। यह प्रावधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बाद 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना अनिवार्य है। यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो वह हिरासत “अवैध हिरासत” (Illegal Detention) मानी जाएगी।
अनुच्छेद 22(2) का पाठ:
“हर उस व्यक्ति को जिसे गिरफ्तार किया गया है और हिरासत में लिया गया है, उसे गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर, उस समय को छोड़कर जो गिरफ्तारी के लिए आवश्यक यात्रा में लगा हो, निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।”
प्रावधान का उद्देश्य:
इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी भी नागरिक की निजी स्वतंत्रता (personal liberty) को मनमाने तरीके से बाधित न किया जाए। यह न्यायिक निगरानी के सिद्धांत को बढ़ावा देता है और पुलिस की शक्ति पर नियंत्रण स्थापित करता है।
महत्वपूर्ण विशेषताएं:
- गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर पेशी अनिवार्य:
पुलिस को अनिवार्य रूप से गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना होता है। - मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना हिरासत जारी नहीं रखी जा सकती:
यदि पुलिस को आरोपी को और अधिक हिरासत में रखना है, तो उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी। - यात्रा समय को छोड़कर 24 घंटे की गणना:
24 घंटे की अवधि में गिरफ्तारी से मजिस्ट्रेट तक की यात्रा का समय शामिल नहीं किया जाता। - अनुपालन न होने पर अवैध हिरासत:
यदि इस संवैधानिक प्रावधान का पालन नहीं किया जाता है, तो वह हिरासत “अवैध” मानी जाती है, और गिरफ्तारी करने वाले पुलिसकर्मियों पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
- D.K. Basu v. State of West Bengal (1997):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के समय और उसके बाद पुलिस द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के लिए सख्त दिशानिर्देश हैं। इनका उल्लंघन होने पर व्यक्ति को मुआवजा देने का भी आदेश दिया जा सकता है। - Joginder Kumar v. State of U.P. (1994):
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी केवल अधिकार का प्रयोग नहीं है, बल्कि इसका न्यायसंगत आधार होना चाहिए। गिरफ्तारी के बाद सूचना और पेशी अनिवार्य हैं।
अनुच्छेद 22(2) का अपवाद:
यह अधिकार दुश्मन देश के नागरिकों और रक्षा अधिनियमों (जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) के अंतर्गत निरोध (preventive detention) में रखे गए व्यक्तियों पर लागू नहीं होता।
महत्व और प्रासंगिकता:
आज के समय में जब पुलिस द्वारा मनमानी गिरफ्तारी और हिरासत की घटनाएं सामने आती हैं, तब अनुच्छेद 22(2) नागरिक स्वतंत्रता का रक्षक बनकर उभरता है। यह लोकतंत्र की आत्मा को जीवित रखता है, जहां कानून से परे कोई नहीं है—न पुलिस, न सरकार।
निष्कर्ष:
अनुच्छेद 22(2) भारतीय नागरिकों के लिए एक संवैधानिक सुरक्षा कवच है, जो उन्हें गिरफ्तारी के बाद न्यायिक संरक्षण सुनिश्चित करता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि कानून के राज (Rule of Law) के सिद्धांत का सम्मान बना रहे, और किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बिना न्यायिक हस्तक्षेप के छीना न जा सके।