“विवाहिक धोखे के आरोप में धारा 376 आईपीसी का अनुप्रयोग: धोखे के बिना सहमति आधारित संबंध पर सुप्रीम कोर्ट का विस्तृत विवेचन और आरोपी की बरी की पुष्टि”
लेख:
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376, जो बलात्कार से संबंधित है, का आवेदन विवाहिक धोखे या विवाह के संदर्भ में उठे ऐसे मामलों में जहां दो पक्षों के बीच सहमति से संबंध स्थापित हुआ हो, संवेदनशील और विवादास्पद विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में इस विषय पर स्पष्ट निर्देश दिए हैं, जिसमें इस बात को प्रमुखता से समझाया गया कि इस धारा का दुरुपयोग व्यक्तिगत संबंधों और विवादों को क्रिमिनलाइज करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
मामले का संक्षिप्त परिचय:
मामले में अभियुक्त पर यह आरोप था कि उसने विवाह के नाम पर धोखा देकर सहमति से शारीरिक संबंध बनाए, जिसके बाद वह उसके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करता रहा। अभियोजन का तर्क था कि धोखे की स्थिति में यह संबंध अपराध की श्रेणी में आता है। परंतु अभियुक्त ने अपनी सफाई में कहा कि दोनों पक्षों के बीच पूरी सहमति और स्वतंत्र इच्छा से संबंध था, और कोई धोखा या दबाव नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट के तर्क:
- धारा 376 का उद्देश्य और सीमाएँ:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 376 का मूल उद्देश्य बिना सहमति शारीरिक संबंध स्थापित करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करना है। इस धारा का प्रयोग तब तक उचित नहीं होता जब तक सम्बन्ध के आरंभ में धोखाधड़ी (fraudulent inducement) या छलपूर्वक बहकावे (deceptive intent) का कोई सबूत न हो। - सहमति और धोखे में अंतर:
न्यायालय ने धोखे से जुड़ा false promise (झूठा वादा) और breach of promise (वादा तोड़ना) के बीच अंतर स्पष्ट किया।- False Promise वह होता है जो जानबूझकर धोखे के लिए किया जाता है, जो आपराधिक दायित्व ला सकता है।
- Breach of Promise केवल एक वाद-विवाद है जो आमतौर पर नागरिक कानून के क्षेत्र में आता है, न कि अपराध के अंतर्गत।
- मामले के तथ्य और निष्कर्ष:
अभियुक्त और अभियोजिका के बीच पांच वर्ष तक सहमति से शारीरिक संबंध थे, जबकि अभियोजिका पहले से वैध विवाह में थी। उसने स्वयं विवाह समाप्त कर यह संबंध जारी रखा। इस तथ्य से यह स्पष्ट होता है कि कोई जबरदस्ती या धोखा नहीं था। कोर्ट ने यह भी माना कि यदि कोई जबरदस्ती या धोखा होता तो पांच वर्षों तक ऐसा संबंध नहीं चलाया जा सकता था। - आपराधिक कानून का दुरुपयोग न हो:
कोर्ट ने जोर दिया कि व्यक्तिगत संबंधों में असफलता या धोखे के लिए आपराधिक कानून का सहारा लेना गलत है, जब तक कि कोई स्पष्ट आपराधिक इरादा न हो। यह न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग माना जाएगा।
अंतिम आदेश:
सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त को धारा 376 के तहत आरोपों से मुक्त करते हुए उसे बरी कर दिया। साथ ही, मामला पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया, यह स्पष्ट करते हुए कि यह मामला निजी विवाद का निपटारा है, न कि आपराधिक मामला।
निष्कर्ष:
यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सहमति और धोखे के बीच संतुलन स्थापित करने में एक मील का पत्थर है। यह स्पष्ट करता है कि बलात्कार की धाराएं व्यक्तिगत वैवाहिक या प्रेम संबंधों के टूटने के लिए नहीं बल्कि असहमति और हिंसा के मामले में ही लागू होनी चाहिए। साथ ही, यह निर्णय अन्यायपूर्ण आरोपों से निर्दोष व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।