शीर्षक: “अनियमित नियुक्ति बनाम अवैध नियुक्ति: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा सेवा बहाली पर ऐतिहासिक निर्णय”
प्रस्तावना:
लोक सेवा या शैक्षणिक संस्थानों में कर्मचारियों की नियुक्तियों के संबंध में “अनियमित” और “अवैध” नियुक्तियों के बीच का अंतर भारतीय न्यायपालिका में लंबे समय से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी की नियुक्ति यदि केवल “अनियमित” थी और बाद में उसकी सेवा नियमित कर दी गई थी, तो उसे केवल प्रारंभिक तकनीकी खामी के आधार पर सेवा से नहीं हटाया जा सकता, विशेष रूप से तब जब उसने 25 वर्षों से अधिक की सेवा पूर्ण कर ली हो।
मामले की पृष्ठभूमि:
मामले में, एक विश्वविद्यालय कर्मचारी, जिसकी प्रारंभिक नियुक्ति में कुछ तकनीकी या प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ थीं, को 25 वर्षों की सेवा के बाद बर्खास्त कर दिया गया। विश्वविद्यालय ने यह तर्क दिया कि नियुक्ति प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं हुआ था, अतः सेवा समाप्त करना आवश्यक था।
कर्मचारी की ओर से यह याचिका प्रस्तुत की गई कि उन्हें लंबे समय तक कार्य करने और बाद में सेवा की पुष्टि के बावजूद, बिना किसी विभागीय जांच अथवा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए, केवल नियुक्ति की “अनियमितता” के आधार पर बर्खास्त किया गया है।
उच्च न्यायालय का निर्णय और तर्क:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कर्मचारी के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए निम्नलिखित बिंदुओं को रेखांकित किया:
- अनियमित नियुक्ति अवैध नहीं:
अदालत ने दोहराया कि नियुक्ति प्रक्रिया में यदि कुछ प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ रह जाएं, तो उसे “अनियमित” कहा जा सकता है, परन्तु यदि नियुक्ति किसी जालसाजी, धोखाधड़ी या कानून के स्पष्ट उल्लंघन पर आधारित न हो, तो वह “अवैध” नहीं मानी जा सकती। - सेवा की पुष्टि का प्रभाव:
अदालत ने माना कि कर्मचारी की सेवा विवि द्वारा औपचारिक रूप से पुष्टि की गई थी। यह पुष्टि नियुक्ति को नियमित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। - प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन:
बिना किसी विभागीय जांच या अवसर प्रदान किए सेवा समाप्त करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के अंतर्गत प्रदत्त न्यायसंगत प्रक्रिया के अधिकार का उल्लंघन है। - दीर्घकालिक सेवा का मूल्य:
न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कर्मचारी ने 25 वर्षों तक निर्विवाद रूप से सेवा की थी, और ऐसे कर्मचारियों को केवल तकनीकी आधार पर बर्खास्त करना अनुचित और कठोर है।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण नज़ीर (precedent) बन गया है, विशेषकर उन मामलों में जहाँ कर्मचारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर बाद में प्रश्नचिह्न लगाए जाते हैं, परंतु उन्होंने वर्षों तक सेवा में योगदान दिया होता है।
यह आदेश यह स्पष्ट करता है कि
- सेवा की पुष्टि एक वैधानिक सुरक्षा देती है,
- अनियमित नियुक्ति मात्र सेवा समाप्ति का पर्याप्त आधार नहीं हो सकती,
- और बिना उचित प्रक्रिया के कर्मचारियों को हटाया नहीं जा सकता।
निष्कर्ष:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय न्याय और समानता के सिद्धांतों को दृढ़ता से समर्थन देता है। यह केवल कर्मचारी अधिकारों की रक्षा नहीं करता, बल्कि संस्थानों को यह चेतावनी भी देता है कि वे नियुक्तियों में पारदर्शिता बनाए रखें और सेवा समाप्ति जैसे कठोर निर्णयों से पहले सभी प्रक्रियात्मक एवं संवैधानिक आवश्यकताओं का पालन करें।