झूठे 498A मामलों में उच्च न्यायालय की भूमिका: Kamal & Ors. vs. State of Gujarat & Anr. – सुप्रीम कोर्ट की मार्गदर्शक टिप्पणी

शीर्षक: झूठे 498A मामलों में उच्च न्यायालय की भूमिका: Kamal & Ors. vs. State of Gujarat & Anr. – सुप्रीम कोर्ट की मार्गदर्शक टिप्पणी


प्रस्तावना:
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, जो विवाहित महिला के साथ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के मामलों से संबंधित है, का मूल उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण देना है। परंतु समय-समय पर इसे दुर्भावनापूर्ण तरीके से, विशेष रूप से ससुराल पक्ष के अन्य सदस्यों जैसे सास-ससुर या देवर-जेठ के विरुद्ध, झूठे मामलों में प्रयोग किए जाने की घटनाएँ सामने आती रही हैं। Kamal & Ors. vs. State of Gujarat & Anr. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में उच्च न्यायालयों को शिकायत की दुर्भावनापूर्ण प्रकृति (malafides) की संभावना पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में पति के माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। आरोप था कि उन्होंने बहू के साथ दुव्यर्वहार और मानसिक/शारीरिक क्रूरता की। याचिकाकर्ताओं (ससुर, सास और अन्य) ने गुजरात हाईकोर्ट में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत याचिका दायर की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके विरुद्ध उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को गलत ठहराते हुए याचिका स्वीकार की और 498A के तहत दर्ज मुकदमा रद्द कर दिया। निर्णय में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर बल दिया गया:

  1. मालाफाइड (दुर्भावना) की जांच अनिवार्य:
    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब किसी पति के रिश्तेदारों द्वारा धारा 482 CrPC के तहत कार्यवाही रद्द करने की प्रार्थना की जाती है, तो उच्च न्यायालय को यह देखना चाहिए कि क्या शिकायतकर्ता (पत्नी) द्वारा दायर प्राथमिकी में कोई व्यक्तिगत दुर्भावना या बदले की भावना छिपी है।
  2. सामान्य और अस्पष्ट आरोपों पर कार्यवाही नहीं:
    कोर्ट ने पाया कि आरोप अत्यंत सामान्य और अस्पष्ट थे, जिनमें कोई विशेष तिथि, स्थान या घटनाओं का स्पष्ट विवरण नहीं था। ऐसी स्थिति में केवल रिश्तेदार होने के कारण आपराधिक मुकदमा चलाना न्यायसंगत नहीं है।
  3. 498A का दुरुपयोग रोकने की आवश्यकता:
    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार पुनः दोहराया कि धारा 498A के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए न्यायालयों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए ताकि निर्दोष लोग उत्पीड़न का शिकार न हों।
  4. साक्ष्य और जमीनी सच्चाई का संतुलन:
    न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में प्रथम दृष्टया साक्ष्य और कथन की गहन समीक्षा आवश्यक है ताकि न्याय का उद्देश्य पूरा हो सके।

न्यायिक महत्व:
यह निर्णय कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है:

  • यह स्पष्ट करता है कि सिर्फ रिश्तेदार होने मात्र से किसी को आपराधिक मुकदमे में घसीटा नहीं जा सकता।
  • उच्च न्यायालयों की जिम्मेदारी है कि वे CrPC की धारा 482 के तहत दाखिल याचिकाओं में निष्पक्षता से मालाफाइड इरादे की जांच करें।
  • यह निर्णय 498A जैसे संवेदनशील प्रावधान के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने में मील का पत्थर है।
  • यह न्यायिक विवेक और संतुलन के प्रयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है।

निष्कर्ष:
Kamal & Ors. vs. State of Gujarat & Anr. में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय 498A मामलों में न्यायालयों की भूमिका को अधिक जिम्मेदार और संवेदनशील बनाने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। यह स्पष्ट करता है कि जहाँ महिलाओं की रक्षा करना आवश्यक है, वहीं निर्दोष व्यक्तियों को झूठे आरोपों से बचाना भी उतना ही आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक न्यायसंगत संतुलन स्थापित करता है — महिलाओं की सुरक्षा और निर्दोष रिश्तेदारों की रक्षा, दोनों के बीच।