शीर्षक: प्रत्यक्षदर्शी की अनुपस्थिति में भी लापरवाही सिद्ध हो सकती है: Meera Bai & Ors. vs. ICICI Lombard General Insurance Co. Ltd. & Anr. – सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
प्रस्तावना:
मोटर वाहन दुर्घटनाओं से संबंधित दावों में यह अक्सर विवाद का विषय होता है कि क्या प्रत्यक्षदर्शी (eye witness) की गवाही के बिना भी चालक की लापरवाही (negligence) को सिद्ध किया जा सकता है? Meera Bai & Ors. vs. ICICI Lombard General Insurance Co. Ltd. & Anr. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रश्न का उत्तर “हाँ” में दिया और यह स्पष्ट किया कि केवल प्रत्यक्षदर्शी की अनुपस्थिति के आधार पर दावे को खारिज नहीं किया जा सकता, विशेषकर जब अन्य पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध हों।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता Meera Bai और अन्य लोग मोटर दुर्घटना में पीड़ित की ओर से मुआवजा पाने हेतु मोटर वाहन दावा न्यायाधिकरण (MACT) में पहुँचे थे। न्यायाधिकरण ने दावा स्वीकार कर लिया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि लापरवाही साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्षदर्शी प्रस्तुत नहीं किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के निर्णय को खारिज करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:
- एफआईआर और आरोप पत्र पर्याप्त संकेतक हैं: दुर्घटना के तुरंत बाद वाहन मालिक-चालक के विरुद्ध लापरवाही और तेज रफ्तार से चलाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी और आगे चलकर पुलिस द्वारा उनके विरुद्ध आरोप पत्र (chargesheet) भी दाखिल किया गया।
- चालक ने गवाही नहीं दी: वाहन चालक ने लिखित उत्तर (written statement) में यह अवश्य कहा कि दुर्घटना उसकी लापरवाही से नहीं हुई, लेकिन उसने खुद को गवाह के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। कानून के अनुसार, यदि कोई पक्ष अपनी बात कहता है लेकिन साक्ष्य के रूप में अदालत में प्रस्तुत नहीं होता, तो उस वक्तव्य को विश्वास योग्य नहीं माना जा सकता।
- प्रत्यक्षदर्शी की गैर-उपलब्धता: सुप्रीम कोर्ट ने यह मान्यता दी कि सभी मामलों में प्रत्यक्षदर्शी की उपस्थिति अपेक्षित नहीं हो सकती। विशेष रूप से सड़क दुर्घटनाओं के मामलों में कई बार ऐसी घटनाएँ एकांत स्थानों या व्यस्त क्षेत्रों में होती हैं जहाँ कोई चश्मदीद गवाह उपलब्ध नहीं होता।
- दस्तावेजी साक्ष्य पर भरोसा: एफआईआर, चार्जशीट, चिकित्सकीय रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि सभी आवश्यक दस्तावेजी साक्ष्य थे जो यह संकेत देते थे कि दुर्घटना लापरवाहीपूर्वक वाहन चलाने के कारण हुई।
इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार की और उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए पीड़ित पक्ष को मुआवजा देने का निर्देश दिया।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय निम्नलिखित कानूनी सिद्धांतों की पुष्टि करता है:
- प्रत्येक दुर्घटना में प्रत्यक्षदर्शी की आवश्यकता नहीं होती।
- यदि आरोपी चालक गवाही देने से बचता है, तो उसका लिखित कथन अपने आप में पर्याप्त नहीं है।
- एफआईआर और आरोप पत्र जैसे दस्तावेज आपराधिक अभियोजन से परे सिविल दावों में भी लापरवाही सिद्ध करने में सहायक हो सकते हैं।
- न्यायालयों को परिस्थितिजन्य और दस्तावेजी साक्ष्यों का सम्यक मूल्यांकन करना चाहिए, न कि केवल प्रत्यक्ष गवाही पर निर्भर रहना चाहिए।
निष्कर्ष:
Meera Bai & Ors. vs. ICICI Lombard General Insurance Co. Ltd. & Anr. मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारतीय मोटर वाहन क्षतिपूर्ति कानून की व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। यह निर्णय विशेष रूप से उन पीड़ितों के लिए राहत का स्रोत है जो तकनीकी कारणों से न्याय से वंचित हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक संवेदनशीलता और विधिक व्यावहारिकता के संतुलन को स्थापित करते हुए यह स्पष्ट किया कि प्रत्यक्षदर्शी की अनुपस्थिति में भी यदि अन्य साक्ष्य लापरवाही को प्रमाणित करते हैं, तो मुआवजे का दावा स्वीकार किया जाना चाहिए।