शीर्षक: परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की शक्ति और अभियोजन में प्रेरणा (Motive) की अनुपस्थिति पर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण: Subhash Aggarwal vs. The State of NCT of Delhi
प्रस्तावना:
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में किसी भी अभियुक्त को दोषी सिद्ध करने के लिए प्रेरणा (motive), साधन (means) और अवसर (opportunity) तीन प्रमुख घटक माने जाते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि यदि अभियोजन पक्ष के पास ऐसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य (circumstantial evidence) हैं जो अभियुक्त की दोषिता को संदेह से परे सिद्ध करते हैं, तो प्रेरणा की अनुपस्थिति भी अभियोजन के लिए घातक नहीं मानी जा सकती। इस सिद्धांत को Subhash Aggarwal vs. The State of NCT of Delhi मामले में एक बार फिर दोहराया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस केस में अपीलकर्ता Subhash Aggarwal को एक अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। उसके विरुद्ध प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य नहीं थे, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य इतने प्रबल थे कि निचली अदालतों ने उसे दोषी करार दिया।
अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर पाया कि उसके अपराध के पीछे कोई स्पष्ट प्रेरणा (motive) थी, अतः उसे दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण बात दोहराई कि:
- प्रेरणा की अनुपस्थिति अभियोजन को कमजोर नहीं बनाती, जब तक कि अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य इस प्रकार हों जो अभियुक्त को स्पष्ट रूप से अपराध से जोड़ते हों।
- परिस्थिजन्य साक्ष्य एक श्रृंखला की भांति होने चाहिए, जो इतने ठोस हों कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति के उस अपराध में सम्मिलित होने की संभावना को पूर्णतः समाप्त कर दें।
- संदेह से परे दोष सिद्धि (proof beyond reasonable doubt) के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, यदि परिस्थितिजन्य साक्ष्य अभियुक्त की भागीदारी की पुष्टि करते हैं, तो प्रेरणा की अनुपस्थिति न्याय में बाधा नहीं बनती।
न्यायिक महत्व:
इस निर्णय से निम्नलिखित कानूनी सिद्धांत पुनः पुष्ट होते हैं:
- मोटिव (motive) साक्ष्यों का पूरक हो सकता है, पर अनिवार्य नहीं।
- परिस्थिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला यदि पूर्ण हो, तो वह प्रत्यक्षदर्शी गवाह की अनुपस्थिति को भी संतुलित कर सकती है।
- न्यायालयों को केवल संदेह के आधार पर अभियुक्त को बरी नहीं करना चाहिए, यदि अभियोजन ने मजबूत और विश्वसनीय परिस्थितिजन्य साक्ष्य प्रस्तुत किए हों।
निष्कर्ष:
Subhash Aggarwal vs. The State of NCT of Delhi मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्यायशास्त्र के लिए एक सशक्त मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करता है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि न्याय केवल तकनीकी पहलुओं पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि समग्र साक्ष्यों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर आधारित होना चाहिए। यदि परिस्थितिजन्य साक्ष्य अभियुक्त की संलिप्तता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं, तो प्रेरणा की अनुपस्थिति अभियोजन के लिए बाधक नहीं बनती।