समझौता डिक्री की वैधता को चुनौती देने का एकमात्र उपाय: पुनः प्रस्तुति याचिका

शीर्षक: समझौता डिक्री की वैधता को चुनौती देने का एकमात्र उपाय: पुनः प्रस्तुति याचिका – Manjunath Tirakappa Malagi & Anr. vs. Gurusiddappa Tirakappa Malagi (Dead Through LRs)


प्रस्तावना:
भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 में Order 23 Rule 3 के अंतर्गत न्यायालय में दर्ज किया गया समझौता (Compromise) एक वैधानिक महत्व रखता है, जो न्यायिक आदेश का रूप ले लेता है। जब एक बार पक्षकार आपसी सहमति से विवाद का निपटारा कर लेते हैं और न्यायालय उस समझौते को स्वीकृति दे देता है, तो वह समझौता डिक्री (Compromise Decree) बन जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने Manjunath Tirakappa Malagi & Anr. vs. Gurusiddappa Tirakappa Malagi (Dead Through LRs) मामले में यह दोहराया है कि ऐसे समझौता डिक्री को चुनौती देने का एकमात्र कानूनी उपाय recall application (पुनः प्रस्तुति याचिका) है, न कि अलग से कोई मुकदमा या अपील।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में Manjunath Tirakappa Malagi और अन्य याचिकाकर्ताओं ने यह दावा किया कि समझौते के आधार पर पारित की गई डिक्री धोखे और कपट से प्राप्त की गई थी। उन्होंने इसके विरुद्ध एक स्वतंत्र दीवानी वाद (civil suit) दायर किया।

प्रतिकारक पक्ष ने यह तर्क दिया कि एक वैध समझौता डिक्री को केवल उसी न्यायालय के समक्ष recall या review किया जा सकता है, जिसने उसे पारित किया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि:

  1. Order 23 Rule 3 CPC के अंतर्गत यदि समझौता विवादित है, तो उसे उसी न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है जिसने डिक्री पारित की है, और वह भी केवल recall application के माध्यम से।
  2. स्वतंत्र दीवानी वाद (Independent Suit) समझौता डिक्री को चुनौती देने के लिए स्वीकार्य नहीं है। यदि पक्षकार ऐसा करता है तो वह कानून की दृष्टि में दोषपूर्ण माना जाएगा।
  3. कोर्ट ने कहा कि समझौता डिक्री को झूठे दस्तावेज या धोखे के आधार पर चुनौती देने की स्थिति में भी एकमात्र उपाय recall application है, न कि एक अलग मुकदमा।

न्यायिक महत्व:
यह निर्णय इस बात को स्पष्ट करता है कि जब एक बार किसी वाद का निपटारा न्यायालय द्वारा समझौते के आधार पर कर दिया गया हो, तो उस डिक्री को चुनौती देने के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध नहीं है।

इस निर्णय के अनुसार:

  • यदि समझौते में धोखाधड़ी, कपट या जबरदस्ती का आरोप हो, तो उसे केवल उसी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • यह न्यायिक कार्यप्रणाली की सुव्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक है ताकि मुकदमों की संख्या अनावश्यक रूप से न बढ़े।

निष्कर्ष:
Manjunath Tirakappa Malagi & Anr. vs. Gurusiddappa Tirakappa Malagi निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने समझौता डिक्री से संबंधित एक महत्वपूर्ण विधिक सिद्धांत को पुनः स्थापित किया है। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, अनुशासन और विधिक मर्यादा बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे यह स्पष्ट होता है कि समझौता डिक्री को चुनौती देने का प्रयास एक सुव्यवस्थित और सीमित विधिक ढांचे में ही किया जा सकता है, अन्यथा न्यायिक अनुशासन का हनन होगा।