शीर्षक: प्रस्तावित खरीदार की स्थायी निषेधाज्ञा याचिका की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: The Correspondence RBANMS Educational Institution vs. B. Gunashekar & Anr
प्रस्तावना:
भारतीय अनुबंध कानून के अंतर्गत, किसी संपत्ति को खरीदने के लिए किया गया agreement to sell केवल एक व्यक्तिगत अनुबंध होता है, जो खरीदार और विक्रेता के बीच वैधानिक अधिकार और दायित्व उत्पन्न करता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि ऐसा कोई प्रस्तावित खरीदार, जो संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त नहीं कर चुका है, वह किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध permanent injunction (स्थायी निषेधाज्ञा) की मांग नहीं कर सकता, जब तक उस तीसरे पक्ष के साथ उसका कोई अनुबंधिक संबंध (privity of contract) न हो।
मामले की पृष्ठभूमि:
The Correspondence RBANMS Educational Institution vs. B. Gunashekar & Anr मामले में वादी (RBANMS Educational Institution) ने एक संपत्ति को खरीदने के लिए एक agreement to sell किया था। इस बीच, प्रतिवादी B. Gunashekar नामक व्यक्ति ने उस संपत्ति में अवैध रूप से हस्तक्षेप किया। इसके विरुद्ध वादी ने एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए दावा दायर किया, जिसमें यह आग्रह किया गया कि प्रतिवादी को संपत्ति में हस्तक्षेप करने से रोका जाए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि चूंकि वादी केवल एक proposed purchaser था और उसे अब तक संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त नहीं हुआ था, वह प्रतिवादी के विरुद्ध स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करने के लिए अधिकृत नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि:
- Privity of Contract का अभाव: प्रतिवादी (तीसरा पक्ष) और वादी (प्रस्तावित खरीदार) के बीच कोई अनुबंधिक संबंध नहीं था। अतः वादी प्रतिवादी के विरुद्ध निषेधाज्ञा प्राप्त नहीं कर सकता।
- कब अधिकार उत्पन्न होता है: जब तक खरीदार को संपत्ति का वैधानिक स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होता, तब तक वह उस संपत्ति पर possessory rights अथवा ownership rights का दावा नहीं कर सकता।
- कानूनी उपचार: यदि संपत्ति पर तीसरे पक्ष का कोई अवैध कब्जा हो, तो केवल विक्रेता ही उसके विरुद्ध उचित कानूनी उपचार (जैसे निषेधाज्ञा) के लिए सक्षम होता है, न कि प्रस्तावित खरीदार।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि agreement to sell केवल खरीदार को एक contractual right प्रदान करता है, न कि संपत्ति पर अधिकार। जब तक विक्रेता संपत्ति का स्वामित्व खरीदार को विधिवत रूप से हस्तांतरित नहीं करता, खरीदार किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध व्यक्तिगत दावा प्रस्तुत नहीं कर सकता।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय संपत्ति से संबंधित विवादों और अनुबंधों की वैधता के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है। यह निर्णय न्यायिक सिद्धांतों को सुदृढ़ करता है कि किसी संपत्ति पर अधिकार प्राप्त करने के लिए केवल agreement to sell पर्याप्त नहीं है। इस प्रकार, प्रस्तावित खरीदार को उचित कानूनी अधिकार प्राप्त करने के लिए पहले संपत्ति का वैध स्वामित्व प्राप्त करना होगा, तभी वह तीसरे पक्ष के विरुद्ध कोई निषेधाज्ञा याचिका दायर करने के लिए सक्षम होगा।