शीर्षक: पत्नी के साथ ‘प्राकृतिक विरुद्ध यौन संबंध’ दंडनीय: वैवाहिक बलात्कार अपवाद धारा 377 IPC में लागू नहीं – हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
परिचय:
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 लंबे समय से विवाद और व्याख्याओं का केंद्र रही है। यह धारा उन यौन कृत्यों को दंडनीय बनाती है जो “प्रकृति के विरुद्ध” माने जाते हैं। हालाँकि, वैवाहिक बलात्कार को लेकर भारतीय कानून में अपवाद की व्यवस्था है, जिससे विवाहित पुरुष को अपनी पत्नी के साथ सहमति के बिना यौन संबंध बनाने पर भी दंड से छूट मिलती है, यदि पत्नी की आयु 18 वर्ष से अधिक है। लेकिन हाल ही में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि वैवाहिक बलात्कार का अपवाद धारा 377 के तहत लागू नहीं होता, और यदि पति पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है तो वह सुसंगत रूप से दंडनीय अपराध है।
मामले की पृष्ठभूमि:
एक विवाहित महिला द्वारा दर्ज प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि उसका पति जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध (unnatural sex) करता था, जिससे उसे गंभीर मानसिक और शारीरिक पीड़ा होती थी। आरोपी पति ने यह दावा करते हुए राहत मांगी कि वैवाहिक संबंधों के अंतर्गत पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन कृत्य वैवाहिक बलात्कार के अपवाद (Exception 2 to Section 375 IPC) के अंतर्गत आता है, और इसलिए वह धारा 377 के तहत दंडनीय नहीं है।
न्यायालय का निर्णय:
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए यह निर्णय दिया कि:
- धारा 375 IPC के अंतर्गत वैवाहिक बलात्कार का अपवाद केवल ‘बलात्कार’ की परिभाषा तक सीमित है।
- धारा 377 IPC, जो अप्राकृतिक यौन कृत्यों को दंडित करती है, उसमें ऐसा कोई अपवाद नहीं है जो विवाहित महिला के लिए पति को विशेष छूट दे।
- यदि पति द्वारा पत्नी के साथ सहमति के बिना या जबरन अप्राकृतिक यौन क्रिया की जाती है (जैसे कि गुदा मैथुन), तो वह धारा 377 के तहत संज्ञेय और दंडनीय अपराध होगा।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि मानव गरिमा, महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और शारीरिक स्वायत्तता को विवाह जैसे संबंधों में भी संरक्षित किया जाना चाहिए।
महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- मानव अधिकारों का संरक्षण: न्यायालय ने कहा कि विवाह का संबंध महिला की सहमति और गरिमा को समाप्त नहीं करता। यदि कोई यौन कृत्य महिला की इच्छा के विरुद्ध और शारीरिक रूप से हानिकारक है, तो वह अपराध की श्रेणी में आता है।
- वैवाहिक बलात्कार अपवाद की सीमा: वैवाहिक बलात्कार का अपवाद केवल धारा 375 IPC तक सीमित है। इसका विस्तार धारा 377 तक नहीं किया जा सकता।
- प्राकृतिक विरुद्ध यौन कृत्य का स्वरूप: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अप्राकृतिक यौन संबंधों में सम्मिलित जबरदस्ती, विशेषकर जब वह पत्नी की सहमति के बिना हो, मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का रूप लेता है, और इससे कानून की भावना और संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
निष्कर्ष:
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय भारत में वैवाहिक संबंधों में यौन सहमति और स्त्री की गरिमा के अधिकार को मान्यता देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह स्पष्ट करता है कि विवाह के संबंध में भी पति को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है, और यदि वह पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है, भले ही वे पति-पत्नी हों।
प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:
- भारतीय दंड संहिता (IPC):
- धारा 375: बलात्कार की परिभाषा (और वैवाहिक बलात्कार का अपवाद)
- धारा 377: प्रकृति के विरुद्ध यौन संबंध
- संविधान का अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
महत्त्व:
यह निर्णय विवाह के भीतर महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित करता है और यौन हिंसा के विरुद्ध न्यायिक प्रणाली की संवेदनशीलता को प्रकट करता है। यह अन्य उच्च न्यायालयों और विधायिका के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकता है ताकि वैवाहिक बलात्कार को पूर्णतः अपराध घोषित करने की दिशा में प्रगतिशील कदम उठाए जा सकें।