“केरल उच्च न्यायालय का निर्णय: साक्ष्य के अभाव में एकपक्षीय डिक्री रद्द करने हेतु विलंब क्षमायाचना अस्वीकृत”

शीर्षक: “केरल उच्च न्यायालय का निर्णय: साक्ष्य के अभाव में एकपक्षीय डिक्री रद्द करने हेतु विलंब क्षमायाचना अस्वीकृत”


परिचय:

विवादों में न्यायसंगत निर्णय सुनिश्चित करने के लिए समय-सीमा (Limitation) का पालन एक आवश्यक विधिक सिद्धांत है। विलंब क्षमा (Condonation of Delay) केवल तब दी जाती है जब याचिकाकर्ता पर्याप्त और विश्वसनीय कारण प्रस्तुत करता है। केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता एकपक्षीय डिक्री (Ex Parte Decree) को निरस्त करने हेतु समय पर आवेदन नहीं करता है, और उसके द्वारा प्रस्तुत “चिकित्सीय अक्षमता” को विश्वसनीय साक्ष्य द्वारा सिद्ध नहीं किया गया है, तो उस विलंब को क्षमा नहीं किया जा सकता।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • इस मामले में वादी ने एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने हेतु Order 9 Rule 13 CPC के अंतर्गत आवेदन दायर किया था।
  • साथ ही, इस विलंब के लिए उसने Limitation Act की धारा 5 के अंतर्गत क्षमा याचना भी प्रस्तुत की, जिसमें उसने दावा किया कि वह बीमार था और इसी कारण समय पर उपस्थित नहीं हो सका।
  • न्यायालय में प्रस्तुत तथ्यों से यह स्पष्ट था कि याचिकाकर्ता को विचाराधीन वाद की जानकारी थी, किंतु उसने अपने चिकित्सीय कारणों को सिद्ध करने हेतु कोई ठोस दस्तावेज या साक्ष्य पेश नहीं किए।

केरल उच्च न्यायालय का निर्णय:

माननीय न्यायमूर्ति के. बाबू की अध्यक्षता में न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा:

  1. साक्ष्य आधारित पर्याप्त कारण आवश्यक:
    Limitation Act की धारा 5 के तहत देरी माफ करने के लिए “पर्याप्त कारण” का होना आवश्यक है। लेकिन यह कारण केवल मौखिक दावे के रूप में स्वीकार्य नहीं है – उचित और ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  2. चिकित्सीय असमर्थता को प्रमाणित करना अनिवार्य:
    याचिकाकर्ता द्वारा चिकित्सीय अक्षमता का दावा किया गया, लेकिन कोई मेडिकल प्रमाण पत्र, डॉक्टर का बयान या अस्पताल का रिकॉर्ड न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया।
  3. जानबूझकर की गई उपेक्षा:
    जब किसी पक्ष को वाद की जानकारी होने के बावजूद भी वह जानबूझकर कार्रवाई नहीं करता, तो न्यायालय यह मान सकता है कि यह लापरवाही या उपेक्षा थी, जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता।

विधिक दृष्टिकोण:

  • Order 9 Rule 13 CPC:
    यह प्रावधान एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने की प्रक्रिया से संबंधित है। किन्तु इसका उपयोग तब ही संभव है जब याचिकाकर्ता यह प्रमाणित कर सके कि वह वास्तव में कोर्ट में अनुपस्थित रहने से विवश था
  • Section 5 of Limitation Act:
    यह धारा न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति देती है कि वह “पर्याप्त कारण” पाए जाने पर विलंब को क्षमा कर सके, लेकिन यह कोई स्वतः प्राप्त अधिकार नहीं है।

न्यायिक निष्कर्ष:

  • न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने अपनी बीमारी का विश्वसनीय प्रमाण नहीं दिया है।
  • मात्र यह कहना कि वह बीमार था, बिना चिकित्सा दस्तावेजों के, न्यायालय की संतुष्टि के लिए अपर्याप्त है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि न्याय में ढिलाई के लिए कोई स्थान नहीं है, विशेषकर जब वादी को पूर्ण जानकारी होने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया गया।

निष्कर्ष:

केरल उच्च न्यायालय का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि न्यायिक प्रक्रियाओं में समय-सीमा का अनुपालन एक आवश्यक तत्व है और इसका उल्लंघन तभी स्वीकार्य है जब उसके पीछे पर्याप्त और प्रमाणित कारण हों। यह निर्णय न केवल विधिक अनुशासन को बढ़ावा देता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो। यह अन्य मामलों में भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण (precedent) के रूप में उपयोग किया जा सकेगा।