धारा 319 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत अतिरिक्त अभियुक्त को तलब करने की सीमा: Kashmir Singh बनाम राज्य हरियाणा एवं अन्य (2025) का न्यायिक विश्लेषण

शीर्षक: धारा 319 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत अतिरिक्त अभियुक्त को तलब करने की सीमा: Kashmir Singh बनाम राज्य हरियाणा एवं अन्य (2025) का न्यायिक विश्लेषण


परिचय:

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 319 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह ऐसे व्यक्ति को भी अभियुक्त के रूप में तलब कर सके, जिसके विरुद्ध कार्यवाही के दौरान प्रथम दृष्टया (prima facie) अपराध का संकेत मिले, भले ही उसका नाम एफ.आई.आर. में न हो। यह एक शक्तिशाली प्रावधान है, परंतु इसका प्रयोग सीमित और विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए। Kashmir Singh बनाम राज्य हरियाणा एवं अन्य (CRM-9181-2025) में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस धारा के उपयोग की सीमा को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया।


मामले की पृष्ठभूमि:

इस मामले में शिकायतकर्ता (Complainant) ने ट्रायल के दौरान गवाही देते हुए अपने पूर्व पुलिस बयान को ही दोहराया। उसने गवाही में किसी नए तथ्य या सामग्री को नहीं जोड़ा। शिकायतकर्ता की याचिका यह थी कि एक व्यक्ति को, जो वर्तमान अभियुक्तों में शामिल नहीं था, उसे धारा 319 के तहत अतिरिक्त अभियुक्त के रूप में तलब किया जाए। उसका तर्क था कि उसके बयान के आधार पर उक्त व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।


अदालत का निर्णय:

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने शिकायतकर्ता की इस याचिका को अस्वीकृत करते हुए निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला:

  1. मूल गवाही में कोई नवीनता नहीं:
    शिकायतकर्ता की अदालत में दी गई गवाही केवल पुलिस के समक्ष दिए गए पुराने बयान की पुनरावृत्ति मात्र थी। इसमें कोई नया तथ्य नहीं जोड़ा गया जिससे किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध अपराध में संलिप्तता का संकेत मिले।
  2. कोई ताजा या स्वतंत्र साक्ष्य नहीं:
    जांच एजेंसी ने पहले ही कथित आरोपी की भूमिका की गहनता से जांच कर ली थी और कोई ठोस साक्ष्य नहीं पाया था। इसलिए, केवल गवाही की पुनरावृत्ति के आधार पर उक्त व्यक्ति को अभियुक्त नहीं बनाया जा सकता।
  3. प्रथम दृष्टया साक्ष्य की आवश्यकता:
    धारा 319 CrPC के तहत अतिरिक्त अभियुक्त को तभी तलब किया जा सकता है जब उसके विरुद्ध प्रथम दृष्टया स्पष्ट और ठोस साक्ष्य हो। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस मामले में ऐसा कोई सशक्त साक्ष्य रिकॉर्ड पर मौजूद नहीं था।

धारा 319 CrPC की न्यायिक व्याख्या:

सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने समय-समय पर धारा 319 CrPC के दायरे और सीमाओं को स्पष्ट किया है:

  • Hardeep Singh v. State of Punjab (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत तभी धारा 319 का प्रयोग कर सकती है जब अभियोजन साक्ष्य से स्पष्ट हो कि संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध मामला पर्याप्त रूप से बनता है।
  • यह केवल संदेह या आरोपों के आधार पर नहीं किया जा सकता।

निर्णय का महत्व:

Kashmir Singh मामले में न्यायालय का निर्णय स्पष्ट करता है कि:

  • धारा 319 CrPC का उपयोग एक असाधारण शक्ति है और इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
  • केवल पूर्व बयान की पुनरावृत्ति या आरोपों की पुनः पुष्टि पर्याप्त नहीं है।
  • यदि जांच एजेंसी ने पहले ही संबंधित व्यक्ति को निर्दोष माना है और कोई नया साक्ष्य नहीं है, तो उसे अभियुक्त नहीं बनाया जा सकता।

निष्कर्ष:

Kashmir Singh बनाम राज्य हरियाणा एवं अन्य (2025) का निर्णय धारा 319 CrPC के विवेकपूर्ण प्रयोग की आवश्यकता को दर्शाता है। यह न्यायिक सिद्धांत को बल देता है कि किसी व्यक्ति को अभियुक्त के रूप में सम्मिलित करने के लिए मात्र संदेह नहीं, बल्कि ठोस एवं स्वतंत्र साक्ष्य आवश्यक होते हैं। इस निर्णय से यह सुनिश्चित होता है कि अभियोजन की प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो और निर्दोष व्यक्तियों को केवल आरोपों के आधार पर अभियुक्त बनने से रोका जा सके।