धार्मिक न्यासों पर नियंत्रण: Sh. Dayanand Saraswati Swamiji v. State of Tamil Nadu – एक संवैधानिक परिप्रेक्ष्य

शीर्षक: धार्मिक न्यासों पर नियंत्रण: Sh. Dayanand Saraswati Swamiji v. State of Tamil Nadu – एक संवैधानिक परिप्रेक्ष्य

भूमिका:

भारत के संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 से 28 तक निहित है। इन अनुच्छेदों के अंतर्गत नागरिकों को अपने धर्म का पालन, प्रचार और प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। इसी संदर्भ में, Sh. Dayanand Saraswati Swamiji (Dead) and Others v. The State of Tamil Nadu and Others का मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें धार्मिक न्यासों और मंदिरों पर राज्य सरकारों के नियंत्रण को चुनौती दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि:

इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में धार्मिक और धर्मार्थ न्यासों (Religious and Charitable Endowments) पर सरकारी नियंत्रण को चुनौती दी। उनका तर्क था कि यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। विशेष रूप से यह प्रश्न उठाया गया कि क्या सरकार का धार्मिक संस्थानों के प्रशासन में हस्तक्षेप उचित और संवैधानिक है?

प्रमुख याचिकाएं और दलीलें:

  1. धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन:
    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों के मामलों में सरकार की सीधी दखलंदाजी अनुच्छेद 25 और 26 के तहत प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन करती है।
  2. धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन:
    यह दावा किया गया कि इन अधिनियमों के अंतर्गत सरकारी अधिकारी धार्मिक संस्थानों की संपत्ति, नियुक्तियों, चढ़ावे, और अनुष्ठानों के मामलों में भी हस्तक्षेप करते हैं, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रतिकूल है।
  3. संविधान में समानता का अधिकार:
    याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि हिंदू धार्मिक संस्थाओं को लक्षित करना अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है, क्योंकि अन्य धर्मों के धार्मिक संस्थानों पर ऐसा नियंत्रण नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील विषय पर कोई अंतिम राय देने के बजाय याचिकाकर्ताओं को संबंधित उच्च न्यायालयों (हाई कोर्ट्स) का रुख करने की सलाह दी। न्यायालय ने कहा कि चूंकि ये कानून राज्य स्तर पर लागू हैं और प्रत्येक राज्य की परिस्थितियां भिन्न हैं, अतः संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय इस पर प्राथमिक स्तर पर विचार करें।

इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं का निस्तारण (disposal) करते हुए उन्हें उचित मंच (High Courts) पर जाने की छूट दी।

निर्णय का प्रभाव:

  1. संवैधानिक बहस को राज्य स्तर पर भेजा गया:
    यह निर्णय इस बात को दर्शाता है कि सर्वोच्च न्यायालय राज्य विशेष कानूनों के परीक्षण को पहले संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा करने की प्राथमिकता देता है।
  2. धार्मिक स्वतंत्रता बनाम प्रशासनिक नियंत्रण:
    यह मुद्दा अब भी जीवंत है कि धार्मिक संस्थानों के प्रशासनिक कार्यों में राज्य का हस्तक्षेप किस हद तक संवैधानिक रूप से वैध है। यह भविष्य में उच्च न्यायालयों और संभवतः फिर से सुप्रीम कोर्ट में विस्तृत संवैधानिक व्याख्या का विषय बन सकता है।
  3. समानता और धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्नचिह्न:
    यह भी एक बड़ा मुद्दा है कि क्या केवल हिंदू संस्थाओं को ही राज्य नियंत्रण में रखा जाना संविधान की धर्मनिरपेक्षता और समानता की भावना के विरुद्ध है?

निष्कर्ष:

Sh. Dayanand Saraswati Swamiji v. State of Tamil Nadu मामला भारत में धार्मिक स्वायत्तता और राज्य के प्रशासनिक नियंत्रण के बीच संतुलन को लेकर एक गंभीर संवैधानिक बहस प्रस्तुत करता है। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तकनीकी आधार पर निपटाया हो, परंतु इससे संबंधित मूल प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं। यह मुद्दा भारतीय लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, और अल्पसंख्यक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण बना रहेगा।