शीर्षक: मात्र लेखा पुस्तकों की प्रविष्टियाँ पर्याप्त नहीं: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ‘विशिष्ट निष्पादन वाद’ को ठुकराया
परिचय:
अनुबंध कानून की दृष्टि से किसी भी बिक्री अनुबंध (Agreement to Sell) को वैध और प्रवर्तनीय (enforceable) तभी माना जाता है, जब पक्षकार न केवल मौखिक या दस्तावेजी रूप से सहमत हों, बल्कि उस अनुबंध को पूरा करने की ईमानदार तत्परता (Readiness) और इच्छाशक्ति (Willingness) भी प्रदर्शित करें। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि मात्र लेखा पुस्तकों में की गई प्रविष्टियाँ (entries in account books) किसी वैध अनुबंध को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
मामले का संक्षिप्त विवरण:
- वादी (Plaintiff) ने प्रतिवादी (Defendant) के विरुद्ध विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) का वाद दायर किया।
- वादी का तर्क था कि प्रतिवादी ने एक संपत्ति को बेचने का अनुबंध किया था और इस संबंध में उनके खाता-बही (account books) में प्रविष्टियाँ दर्ज हैं।
- प्रतिवादी ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि ऐसा कोई वैध अनुबंध नहीं हुआ था, और वादी कभी भी भुगतान करने के लिए न तत्पर था, न इच्छुक।
न्यायालय का विश्लेषण:
- मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि—
“लेखा पुस्तकों में प्रविष्टियाँ केवल आंतरिक लेखांकन का माध्यम हैं। वे किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध अनुबंध को सिद्ध करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकतीं।”
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि:
- वाद दायर करने वाले को यह सिद्ध करना आवश्यक है कि वह अनुबंध की शर्तों को पूरा करने के लिए तैयार (ready) और इच्छुक (willing) था।
- केवल खाता-बही में प्रविष्टियों के सहारे यह मान लेना कि भुगतान की मंशा थी, कानूनन पर्याप्त नहीं है।
निर्णय का सार:
- अदालत ने पाया कि वादी ने कोई ऐसा दस्तावेज या व्यवहार प्रस्तुत नहीं किया जिससे यह प्रतीत हो कि उसने भुगतान करने का वास्तविक प्रयास किया था।
- ऐसे में वादी के पास अनुबंध को लागू कराने का कोई वैध और प्रवर्तनीय अधिकार नहीं था।
- अतः, विशिष्ट निष्पादन की याचिका खारिज कर दी गई।
फैसले का महत्व:
यह निर्णय भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 और विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 के प्रावधानों की व्याख्या को और अधिक स्पष्ट करता है। इस निर्णय के माध्यम से निम्नलिखित सिद्धांतों की पुष्टि हुई:
- अनुबंध की प्रवर्तनीयता (Enforceability) मात्र दस्तावेज़ या बही-खातों पर आधारित नहीं हो सकती।
- वादकर्ता को अनुबंध के प्रति वास्तविक तत्परता और इच्छाशक्ति प्रदर्शित करनी होगी।
- कोर्ट आर्थिक व्यवहार में वास्तविकता और मंशा (intent) को प्रमुखता देती है, न कि केवल औपचारिक प्रविष्टियों को।
निष्कर्ष:
29 अप्रैल 2025 को दिया गया मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल अनुबंध कानून के न्यायिक सिद्धांतों को सुदृढ़ करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि कानून केवल “कागज़ी सबूतों” पर नहीं, बल्कि “व्यावहारिक तत्परता और ईमानदारी” पर विश्वास करता है।
यह निर्णय व्यापारिक विवादों और संपत्ति से संबंधित अनुबंधों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है, जहां अक्सर खाता-बही की प्रविष्टियों को कानूनी सहमति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।