शीर्षक: अग्रिम भुगतान की वापसी बिना विशिष्ट याचना के संभव नहीं: सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 22 की सख्त व्याख्या
भूमिका:
नागरिक न्याय प्रणाली में जब कोई पार्टी अनुबंध के उल्लंघन के आधार पर विशेष निष्पादन (Specific Performance) की मांग करता है, तो कई बार वह अनुबंध के अंतर्गत दिए गए advance payment (अग्रिम भुगतान) की वापसी की भी आशा रखता है। परंतु क्या बिना याचिका में स्पष्ट मांग किए अदालत ऐसी राशि वापस कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने Specific Relief Act, 1963 की धारा 22 की व्याख्या करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि अग्रिम भुगतान की वापसी तभी संभव है जब याचिकाकर्ता याचिका (Plaint) में इसकी specific prayer करे।
प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:
इस मामले में वादी ने एक संपत्ति के विक्रय अनुबंध के तहत विक्रेता को अग्रिम राशि दी थी। बाद में अनुबंध का निष्पादन न हो पाने पर वादी ने विशेष निष्पादन हेतु याचिका दायर की, लेकिन याचिका में दिए गए प्रारूप में अग्रिम राशि की वापसी के लिए कोई स्पष्ट मांग नहीं की गई थी। निचली अदालत ने वादी को राहत दी, किंतु उच्चतम न्यायालय में यह प्रश्न उठा कि क्या अग्रिम राशि की वापसी बिना स्पष्ट याचना के दी जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और दृष्टिकोण:
सुप्रीम कोर्ट ने Section 22(2) of the Specific Relief Act का हवाला देते हुए कहा:
“Unless there is a specific prayer for refund of advance payment in the plaint, the court cannot grant such relief as an ancillary or implied relief.”
इस निर्णय में न्यायालय ने यह दो टूक स्पष्ट किया कि न्यायालय तब तक किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति या भुगतान वापसी का आदेश नहीं दे सकता, जब तक उसे याचिका में स्पष्ट रूप से माँगा न गया हो। यह सिद्धांत pleadings govern the relief के सिद्धांत पर आधारित है, अर्थात् न्यायालय वही राहत दे सकता है जो याचिका में माँगी गई हो।
धारा 22 की विधिक व्याख्या:
धारा 22(1) के अनुसार, यदि वादी विशिष्ट निष्पादन की मांग करता है तो वह याचिका में निम्न अतिरिक्त राहतों की मांग कर सकता है:
- (a) कब्जे की वापसी
- (b) क्षतिपूर्ति
- (c) अग्रिम भुगतान या राशि की वापसी
जबकि धारा 22(2) स्पष्ट करती है कि उपर्युक्त में से कोई भी राहत न्यायालय द्वारा तभी दी जा सकती है जब वह स्पष्ट रूप से याचिका में मांगी गई हो।
न्यायिक सिद्धांतों पर प्रभाव:
यह निर्णय न केवल Specific Relief Act की व्याख्या को सुदृढ़ करता है, बल्कि वाद लेखन (drafting of plaints) की प्रक्रिया में भी अनुशासन और स्पष्टता को अनिवार्य करता है। यह अधिवक्ताओं और वादकारियों दोनों को यह सिखाता है कि मुकदमा दायर करते समय कौन-कौन सी राहतें स्पष्ट रूप से मांगी जानी चाहिए।
महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
- अग्रिम भुगतान (advance money) की वापसी स्वतः नहीं दी जा सकती।
- वाद पत्र (plaint) में स्पष्ट याचना (specific prayer) अनिवार्य है।
- न्यायालय केवल उन्हीं राहतों को दे सकता है जो याचिका में स्पष्ट रूप से मांगी गई हों।
- यह निर्णय न्यायिक अनुशासन और प्रक्रिया की गरिमा को बढ़ाता है।
समापन:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भविष्य के सभी वादों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत स्थापित करता है, खासकर उन मामलों में जहाँ अनुबंध संबंधी विवादों में वित्तीय भुगतान भी शामिल होते हैं। अधिवक्ताओं को वाद लेखन में पूरी पारदर्शिता और सटीकता बरतनी होगी, अन्यथा उनकी याचिकाएं तकनीकी आधार पर अस्वीकार हो सकती हैं। यह भारतीय न्याय प्रणाली में “Due Process” के सिद्धांत की पुष्टि करता है और न्याय के साथ प्रक्रिया की पवित्रता को भी बनाए रखता है।