दहेज के लिए भूखा रखकर हत्या: केरल न्यायालय ने पति और सास को आजीवन कारावास की सजा सुनाई

शीर्षक: दहेज के लिए भूखा रखकर हत्या: केरल न्यायालय ने पति और सास को आजीवन कारावास की सजा सुनाई

भूमिका:
दहेज उत्पीड़न और हत्या भारतीय समाज में एक गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्या बनी हुई है। कई बार यह उत्पीड़न शारीरिक हिंसा, मानसिक यातना या सामाजिक बहिष्कार के रूप में सामने आता है। केरल के एक न्यायालय ने हाल ही में एक अत्यंत क्रूर और अमानवीय प्रकरण में पति और सास को पत्नी की भूखा रखकर हत्या करने के आरोप में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह निर्णय न केवल दहेज-प्रथा के विरुद्ध एक सशक्त संदेश है, बल्कि मानवाधिकारों और नारी गरिमा की रक्षा की दिशा में न्यायपालिका की संवेदनशीलता को भी दर्शाता है।

प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:
न्यायालय में प्रस्तुत साक्ष्यों और गवाहों के अनुसार, पीड़िता की शादी के बाद से ही उसके पति और सास द्वारा दहेज के लिए लगातार मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना की जा रही थी। जब परिवार पीड़िता की ओर से और अधिक दहेज लाने में असमर्थ रहा, तो पति और सास ने उसे भोजन और दवाइयों से वंचित करना शुरू कर दिया। यह क्रम कई महीनों तक चला, जिसके परिणामस्वरूप महिला अत्यंत कुपोषित हो गई और अंततः उसकी मृत्यु हो गई।

न्यायालय का निर्णय और टिप्पणी:
केरल की सत्र न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा –

“The death of the woman was not natural or accidental. It was a direct result of prolonged and intentional starvation inflicted by her husband and mother-in-law, who deliberately withheld food and medicines from her, thereby violating her basic right to life and dignity.”

अदालत ने दोनों अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), 304B (दहेज मृत्यु), और 498A (पति या उसके रिश्तेदार द्वारा क्रूरता) के अंतर्गत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

महिला अधिकार और न्यायिक सक्रियता:
यह मामला भारतीय महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों और उनके प्रति समाज की जिम्मेदारी पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है। इस प्रकरण में यह स्पष्ट रूप से उल्लंघित हुआ। न्यायालय ने यह भी माना कि महिला को लगातार भूखा रखना, चिकित्सा से वंचित करना और उसे तिल-तिल मरने के लिए मजबूर करना, मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है।

समाज पर प्रभाव:
यह निर्णय पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि दहेज के लिए की गई किसी भी तरह की हिंसा को अब समाज और न्यायपालिका बर्दाश्त नहीं करेगी। इस सजा से यह संदेश जाता है कि यदि कोई परिवार बहू को केवल दहेज न मिलने के कारण प्रताड़ित करता है या उसकी जान लेता है, तो उसे कठोरतम दंड का सामना करना पड़ेगा।

निष्कर्ष:
यह प्रकरण न्यायपालिका की उस भूमिका को रेखांकित करता है जिसमें वह नारी गरिमा, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए निर्णायक कदम उठाती है। भूखा रखकर हत्या करना एक सभ्य समाज में अकल्पनीय अपराध है और इस पर न्यायालय की सख्ती न केवल न्याय का परिचायक है, बल्कि भविष्य में ऐसे अपराधों को रोकने की दिशा में भी एक मजबूत कदम है।

दहेज-प्रथा जैसी सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए समाज, सरकार और न्यायपालिका — तीनों का संयुक्त प्रयास अत्यंत आवश्यक है, ताकि कोई और बेटी इस क्रूरता का शिकार न हो।