शीर्षक: थाने में सम्मानपूर्वक व्यवहार अब मौलिक अधिकार: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
भूमिका:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। यह अधिकार न केवल शारीरिक अस्तित्व बल्कि गरिमापूर्ण जीवन जीने की भी गारंटी देता है। सुप्रीम कोर्ट ने Pavul Yesu Dhasan v. The Registrar, State Human Rights Commission of Tamil Nadu (SLP(C) No. 20028/2022) में इसी सिद्धांत को पुष्ट करते हुए यह स्पष्ट किया है कि पुलिस स्टेशन में आने वाला हर व्यक्ति सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार पाने का अधिकारी है।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
साल 2013 में एक व्यक्ति श्रीविल्लीपुथुर पुलिस थाने में ₹13 लाख की ठगी की शिकायत लेकर पहुँचा। वहाँ तैनात तत्कालीन इंस्पेक्टर पावुल येसु धसान ने न केवल FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया, बल्कि शिकायतकर्ता की वृद्ध माँ के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया। यह आचरण न केवल पुलिस कर्तव्यों के प्रतिकूल था, बल्कि मानवीय गरिमा का भी गंभीर उल्लंघन था।
मानवाधिकार आयोग और उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:
तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग (TNSHRC) ने इस मामले को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 2(1)(d) के तहत मानवाधिकार उल्लंघन माना। आयोग ने ₹2 लाख मुआवज़ा देने का आदेश दिया, जिसे संबंधित अधिकारी से वसूलने का निर्देश दिया गया। मद्रास उच्च न्यायालय ने भी आयोग के आदेश को सही ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और उसकी महत्ता:
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न केवल TNSHRC और मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक व्याख्या भी प्रस्तुत की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस स्टेशन में जाने वाला प्रत्येक नागरिक सम्मानपूर्ण व्यवहार का अधिकारी है और यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षित है।
कोर्ट ने कहा कि “पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह न केवल कानून का पालन करे, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के प्रति संवेदनशील, न्यायप्रिय और गरिमामयी व्यवहार रखे। यह कर्तव्य एक नागरिक के आत्मसम्मान की रक्षा से जुड़ा है।”
इस निर्णय का व्यापक प्रभाव:
यह निर्णय देश भर के पुलिस अधिकारियों के लिए एक चेतावनी है कि वे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए नागरिकों के साथ अनुशासित, गरिमामयी और संवेदनशील व्यवहार करें। पुलिस थाने अब डर और अपमान के नहीं, बल्कि न्याय और सम्मान के केंद्र होने चाहिए।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल एक पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने का कार्य करता है, बल्कि पुलिस व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भी है। यह नागरिकों में यह भरोसा पैदा करता है कि उनकी गरिमा और अधिकारों की रक्षा की जाएगी, चाहे वे किसी भी सरकारी संस्था के सामने क्यों न हों।
यह निर्णय न्यायपालिका की संवेदनशीलता, मानवाधिकारों की रक्षा तथा संविधान की गरिमा बनाए रखने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।