पत्नी द्वारा लगाए गए झूठे आरोप और पति की प्रतिष्ठा पर असर – मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक का अधिकार: एक सुप्रीम कोर्ट निर्णय
परिचय:
वैवाहिक संबंधों में आपसी सम्मान, विश्वास और मानसिक शांति का अत्यधिक महत्व होता है। जब पति-पत्नी के बीच के संबंध इतने बिगड़ जाते हैं कि वे एक-दूसरे की प्रतिष्ठा और मानसिक शांति को नष्ट करने लगें, तो यह मानसिक क्रूरता का रूप ले लेता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि पत्नी द्वारा पति पर लगाए गए ऐसे आरोप, जो उसकी नौकरी और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाते हैं, मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आते हैं और पति को तलाक का वैधानिक अधिकार देते हैं।
मामले का संक्षिप्त विवरण:
इस मामले में पति एक सेना अधिकारी थे, जिन पर उनकी पत्नी ने कई बार झूठे और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाए। इन शिकायतों को सेना के वरिष्ठ अधिकारियों — यहाँ तक कि आर्मी चीफ तक — भेजा गया। इन आरोपों के कारण पति की पेशेवर छवि और मानसिक शांति बुरी तरह प्रभावित हुई।
परिवार न्यायालय (Family Court) ने इस आधार पर पति के पक्ष में तलाक की डिक्री पारित की, लेकिन उच्च न्यायालय (High Court) ने उस निर्णय को पलटते हुए इसे केवल एक “सामान्य वैवाहिक विवाद” मानते हुए पत्नी के पक्ष में निर्णय दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उच्च न्यायालय के निर्णय को खारिज करते हुए परिवार न्यायालय के आदेश को पुनः बहाल कर दिया। न्यायालय ने कहा कि –
- पति की प्रतिष्ठा और करियर पर झूठे आरोपों से गंभीर और अपूरणीय क्षति हुई।
- ये आरोप सामान्य वैवाहिक झगड़े नहीं हैं, बल्कि स्पष्ट रूप से मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आते हैं।
- पत्नी द्वारा की गई शिकायतों ने पति की मानसिक शांति को बाधित किया, और यह वैवाहिक जीवन को असहनीय बना देता है।
- इसलिए, वैवाहिक संबंधों का ऐसा टूटना तलाक के लिए पर्याप्त आधार है।
कानूनी दृष्टिकोण:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के अनुसार, यदि किसी जीवनसाथी के व्यवहार से दूसरे जीवनसाथी को मानसिक क्रूरता झेलनी पड़े, तो वह तलाक का दावा कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस धारा की व्याख्या को और स्पष्ट करता है कि मानसिक क्रूरता केवल शारीरिक अत्याचार तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा, करियर और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव भी इसमें शामिल है।
निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि पति या पत्नी में से कोई भी यदि अपने जीवनसाथी की प्रतिष्ठा को दुर्भावनापूर्वक नुकसान पहुँचाता है, विशेषकर यदि वह आरोप झूठे और बेबुनियाद हों, तो यह मानसिक क्रूरता मानी जाएगी। यह फैसला वैवाहिक कानून की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है, जो विवाह में सम्मानजनक व्यवहार को अनिवार्य ठहराता है और मानसिक शांति को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।